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चेतना केन्द्रों को जागृत करते हैं। इस प्रकार जो कार्य वृहद् तपस्या अथवा दीर्घकालिक साधना से बहुत समय में पूर्ण होता है वह इस महामंत्र की आराधना से स्वल्प समय में ही आसानी से पूर्ण हो सकता है। अपेक्षा है गुरु के उचित मार्गदर्शन की।
लोग रेडियम के बारे में जानने के लिए मेडम क्यूरी के पास जाते हैं। वे अणु स्वरूप समझने के लिए रदरफोर्ड के पास जाते हैं। जिस प्रकार प्रकृति विज्ञानों में एक सक्षम गुरु की आवश्यकता है उसी प्रकार अध्यात्म विज्ञान में आत्म साक्षात्कार की पद्धति सीखने के लिए गुरु का मार्ग-दर्शन नितान्त आवश्यक है। संदर्भ १. वक्रोक्ति जीवित-२/१ २. काव्य प्रकाश-८/७४ ३. काव्यालंकार, सूत्र वृत्ति, वामन-१३.१५ वृत्ति ४. काव्य प्रकाश-८.७० ५. वही-८.७५ ६. साहित्य दर्पण-१०/५ ७. वही-१०/५ ८. जैन धर्म के साधना सूत्र-पृ./१४६ ६. वही-पृ./१४७ १०. उत्तराध्ययन-१८/३८ ११. तीर्थंकर दिसम्बर १६६० प्रो.जी.आर जैन के लेख से उधृत १२. स्वागत करे उजालों का-पृ./३१ १३. अभिधान चिंतामणि १४. साधना पद-पृ./५३, ५४
१०२ / लोगस्स-एक साधना-१