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. नरवाना की एक बहन अपने पीहर टोहाना आई हुई थी। उसने भी प्रवचन के दौरान उपरोक्त घटना प्रसंग को सुना और साथ में यह भी सुना कि घर पर उल्लू बोल रहा हो, बिल्लियां रो रही हों अथवा कुत्ते रो रहे हों तब लोगस्स का पाठ करने से समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण को आयम्बिल की तपस्या करके लोगस्स की माला फेरने से धन-धान्य, सुख-समृद्धि का लाभ होता है। संयोग वश एक दिन उस बहन को कुत्तों के रोने की आवाज सुनाई दी। उसने तुरंत लोगस्स का पाठ शुरू कर दिया। जब तक कुत्ते रोते रहें, वह लोगस्स बोलती रही। उस बहन का ऐसा मानना है कि उसी दिन से हमारी निर्धनता समाप्त हो गई।
उपरोक्त घटना-प्रसंग इस तथ्य को दर्शाते हैं कि लोगस्स में ऐसे अपूर्व मंत्राक्षर हैं जिनमें समस्त भय, विघ्न-बाधा, रोग, शोक, दुःख, दारिद्रय और अन्तस् के विकारों को नष्ट कर सर्व मनोरथ सिद्ध करने की अद्भुत क्षमता विद्यमान है। ग्रहों की शांति, पारिवारिक कलह निवारण, शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य के साथ आध्यात्मिक शक्तियों का विकास इस रहस्य को उजागर करता है कि लोगस्स शांति, शक्ति, सम्पत्ति तथा बुद्धि के रूप में विश्व में पूजित शक्तियों का आधार है। इसकी अर्हता अचिन्त्य है। निस्संदेह यह अलौकिक सिद्धियों का भंडार है। इसके अक्षर-अक्षर में मंत्रत्व ध्वनित होता है। निष्कर्ष
मंत्र बीजाक्षर मय होते हैं। इनमें शक्तितत्त्व भरा रहता है। लोगस्स का संबंध मंत्र-साधना, ध्यान-साधना तथा अर्हत् व सिद्ध भगवन्तों की आराधना से है। अतः इनमें बीज तत्त्वों का संयोजन एक विशिष्ट आधार पूर्वक किया गया प्रतीत होता है। इसके सब अक्षर यौगिक हैं। यौगिक अक्षर अणु और परमाणु से भी अधिक सूक्ष्म होते हैं। इसके प्रत्येक अक्षर से निकलते हुए प्रकाश को आत्मव्यापी बना दें, रोम-रोम में बसा लें। इससे अज्ञान रूपी अंधकार अपने आप आत्मा से पलायन कर देगा। वास्तव में जड़ता मिटने से ही चैतन्यता के प्रवाह की गति बढ़ती है।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है उपरोक्त देह संरचना के रहस्यों के साथ-साथ लोगस्स के प्रत्येक अक्षर में कोटि-कोटि महान आत्माओं की प्रतिध्वनियों, शुभाकांक्षाएं व मंगल भावनाएं झंकृत हैं। पाप पुञ्ज पलायिनी, अशुभ कर्म नाशिनी एवं वेदना निग्रह कारिणी शक्तियों का भंडार इसमें निहित है। ऐसे अपरिमित शक्ति वाले इस स्तव के उच्चारण से ही सूक्ष्म शरीर में छिपे अनेक शक्ति केन्द्र जागृत होते हैं। इसका उच्चारण, जिह्वा, दंत, कंठ, तालु, औष्ठ, मूर्धा आदि स्थानों से होने के कारण एक विशेष प्रकार के स्पन्दन होते हैं जो विभिन्न प्रकार के शक्ति व
लोगस्स देह संरचना के रहस्य / १०१