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जीव से है, इसलिए इनसे होने वाला शब्द जीव शब्द कहलाता है।
२. अजीब शब्द-पुद्गलों के संघर्षण से जो ध्वनि होती है, वह अजीव शब्द है। झालर, ताल, कांस्य-इनसे होने वाला शब्द अजीव शब्द है। खटपट करना, चुटकी बजाना, पांव पटकना आदि क्रियाओं से जो शब्द होता है, वह भी अजीव शब्द है।
३. मिश्र शब्द-उपर्युक्त आठ स्थानों और वाद्यों का योग होने पर जो शब्द निकलता है, वह मिश्र शब्द है। शब्द की उपयोगिता
शब्द सार्थक भी होते हैं और निरर्थक भी। निरर्थक शब्दों का कोई उपयोग नहीं होता पर सार्थक शब्द फिर चाहे वे शब्दात्मक हों या ध्वन्यात्मक, प्राणी जगत् की भावनाओं को व्यक्त करते हैं। समूह चेतना में एक दूसरे को समझने के लिए शब्द ही एक सशक्त माध्यम बनता है। शब्द के संदर्भ में जैन दर्शन का मन्तव्य
शब्द इंद्रियों द्वारा ग्रहित होते हैं, इसलिए वे पुद्गल हैं। पुद्गलों के मिलने और बिछुड़ने से शब्द पैदा होता है। दो कपाट मिलते हैं और खुलते हैं तो शब्द होता है। वस्त्र को बनाते समय और फाड़ते समय भी शब्द होता है। किसी पात्र को जल या दूध से भरते समय और खाली करते समय भी शब्द होता है। वस्त्र पहनते समय और उतारते समय भी शब्द होता है। इन सब उदाहरणों से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि शब्द की उत्पत्ति में पुद्गलों का भेद और संघात प्रमुख कारण है।
ध्वनित शब्द में पौद्गलिकता का विद्यमान होना जरूरी है। यह जैन दर्शन की महत्त्वपूर्ण देन है जो विज्ञान सम्मत है। जब से रेडियों ने ध्वनि तरंगों को पकड़ना शुरू कर दिया जैन दर्शन की शब्दावली में भाषा वर्गणा के पुद्गलों को पकड़ना शुरू कर दिया, तब से ध्वनि शब्द की पौद्गलिकता असंदिग्ध रूप से प्रमाणित हो गई।
जैन दर्शन का एक अभिमत यह भी है कि जब कोई व्यक्ति तीव्र प्रयत्न से बोलता है तब उसकी भाषा वर्गणा के पुद्गल सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हो जाते हैं। इन शब्दों की ध्वनि यंत्र के सहारे हज़ारों मील की दूरी पर पकड़ ली जाती है। कुछ वैज्ञानिक तो यह दावा करते हैं कि हजारों वर्ष पूर्व बोले गये शब्द भी आज इस वायुमंडल में उपस्थित हैं। ऐसी स्थिति में जैन दर्शन में ध्वनि शब्द के संदर्भ में जो
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