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नमिऊण स्तोत्र, अ सि आ उ सा मंत्र, संति कुंथु अरहो......पणासेह मंत्र रूप गाथा-इन सबमें 'स' वर्ण अपने योजक शब्दों के साथ कई बार प्रयुक्त हुआ है।
उपरोक्त सारे संदर्भो में मैं जब 'लोगस्स' का पर्यवेक्षण करती हूँ तो लोगस्स में 'स' वर्ण अपने योजक शब्दों के साथ तीस बार प्रयुक्त हुआ है। यह अल्फा तरंगों के निर्माण व शांति का बहुत बड़ा रहस्य है। मंत्र शास्त्र में 'स' बीज को कर्म विनाशक भी माना गया है और शक्तिशाली भी माना है।
कर्ण अगोचर तरंगें
वैज्ञानिक ने एक यंत्र का अविष्कार किया है जिसे पिजो-इलेक्ट्रिक ओसीलेटर कहा जाता है। इस यंत्र में स्फटिक (विल्लोर-टिज) की एक प्लेट होती है। इस प्लेट का संबंध बिजली की ए.सी. धारा के साथ जोड़ा जाता है तो उसकी तरह कंपन करने लगती है। इस प्लेट के कंपन प्रति सैंकण्ड कई लाख से कम नहीं होते। इस कंपन के कारण चारों ओर वायु में शब्द की सूक्ष्म तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं। ये ही तरंगें कर्ण अगोचर (अल्ट्रा सॉनिक साउंड) कहलाती हैं।
. इन कर्ण अगोचर ध्वनि तरंगों को यंत्र के सहारे जब किसी दिशा में भेजा जाता है तो इन तरंगों के मार्ग में मनुष्य यदि अपना हाथ कर दें तो उसके हाथ में से रक्त की बूंदे टपकने लगती हैं। उसे ऐसी वेदना का अनुभव होने लगता है मानों कि उसके हाथ में सहन सुइयां चुभ रही हों। जर्मनी में इन यंत्रों का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया जाता है, तब इनमें से निकलती हुई तरंगें सब कीड़ों को नष्ट कर देती हैं, ऐसा माना जाता है।११
इस वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में जब हम प्राचीनकाल की शब्द संबंधी धारणाओं को मूल्यांकित करते हैं तो यह आसानी से समझ में आ जाती है कि शब्द में प्रहारक शक्ति भी है, धारक शक्ति भी है, स्तंभन शक्ति भी है, मारक शक्ति भी है और रक्षक शक्ति भी है। शब्द शक्ति का चमत्कार आधुनिक मोबाईल, इन्टरनेट आदि आविष्कारों से स्वयं सिद्ध है। अतः मंत्र के उच्चारण से होने वाली असीम शक्ति पर विश्वास करने में कोई संदेह नहीं। शब्द की शक्ति, ध्वनि और पराध्वनि की शक्ति अचिन्त्य होती है। मानसिक चित्र का निर्माण
जैन दर्शन में मन के दो प्रकार बतलाएं गये हैं-द्रव्य मन और भाव मन। भाव मन चित्त/चेतना है। द्रव्य मन मनोवर्गणा का पुद्गल है। मन का कार्य है विचार करना। वैज्ञानिक दृष्टि से भी विचार भौतिक है, पदार्थ रूप है। डॉक्टर
लोगस्स देह संरचना के रहस्य / ६७