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पूर्व था । इसे कोई भी करके देख सकता है। चालीस लोगस्स का ध्यान और प्रत्येक पद श्वास के साथ । समय चाहे आधा घंटा लग जाये पर इतना निश्चित है कि फिर कभी नींद की गोलियों की जरूरत नहीं पड़ेगी। ज्यादा नहीं तो श्वास में चार लोगस्स का ही ध्यान कर लें फिर देखें मस्तिष्क में कितनी शांति की अनुभूति होती है। पूरे दिन एक विचित्र सी मस्ती रहेगी ।"" लोगस्स की पूरी विधि है शुद्ध उच्चारण, अर्थबोध, रंगों के साथ मानसिक चित्र का निर्माण और श्वास के साथ लोगस्स का जप - इस विधि से लोगस्स का पाठ किया जाये, तो वह शक्तिशाली बन जायेगा, बहुत प्रभावी सिद्ध होगा ।" जब मैंने इसकी अर्थात्मा को जानने की कोशिश की तो इसकी बाह्य देह संरचना में प्रयुक्त शब्दों से भी अनेक रहस्य हस्तगत होते गये। मुझे भी लगा सचमुच लोगस्स से बड़ा कोई शांतिप्रदाता नहीं है।
किसी व्यक्ति को नींद नहीं आ रही है, नसें तन रही हैं, नसों में खिंचाव व तनाव है, उस समय “णमो सिद्धाणं / सिद्धाणं”, “ णमो लोए सव्व साहूणं / णमो सव्व साहूणं” अथवा लोगस्स का जप तनाव मुक्ति हेतु अत्यन्त प्रभावशाली माना गया है । इसका प्रमुख कारण है इसमें विवर्णित 'स' वर्ण । 'स' वर्ण शांति प्रदायक व जल बीज होने से साधना में परमोपयोगी है। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने उत्तराध्ययन की निम्नोक्त गाथा को भी अत्यन्त शांतिदायक बताया है
चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्ढिओ ।
संती संतिकरे लोए, पत्तो गइ मणुत्तरं ॥ "
इस गाथा में भी 'स' वर्ण तीन बार अपने योजक शब्दों के साथ प्रयुक्त है । इस गाथा का लयबद्ध उच्चारण अल्फा तरंगों को निर्मित करता है। एक बार के उच्चारण में 'स' की तीन आवृत्ति १११ गुण शक्तिशाली होकर शांति प्रदान करने की क्षमता रखती है। इस शक्ति संवर्धन का प्रमुख कारण है- योजक शब्दों के साथ 'स' का नियोजन | जिस प्रकार भौतिक जगत् में कैल्शियम, कार्बन और ऑक्सीजन-इन तत्त्वों के एक निश्चित अनुपात में मिलने पर चॉक बनती है, जो लिखने के काम आती है । इन तत्त्वों की तरह ही उष्ण, शीत, मृदु, कर्कश आदि शब्दों के भौतिक संयोग से, उनके पुनरावर्त्तन से और साथ में भावना व एकाग्रता का योग होने से एक विशेष प्रकार की ऊर्जा का निर्माण होता है । जिसका संबंध आरोग्य, बोधि, समाधि, कर्म निर्जरा और आध्यात्मिक शक्तियों के विस्फोट से जुड़ा है । यदि गहराई से अध्ययन किया जाये तो ज्ञात होता है कि जितने भी शांति प्रदाता मंत्र अथवा स्तोत्र निर्मित हैं, जैसे उवसग्गहर स्तोत्र, शांति नाथ स्तोत्र,
६६ / लोगस्स - एक साधना - १