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भगवती सूत्र
श. ४० का दूसरा अंतर्शतक उ. २ ११, तीसरे से पांचवां अंतर्शतक: सू. १३-२२ हां, वे जीव कृष्णलेश्य हैं, शेष उसी प्रकार बतलाना चाहिए। इसी प्रकार सोलह युग्मों के
विषय में बतलाना चाहिए ।
१४. भन्ते ! वह ऐसा
। भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
तीसरा - ग्यारहवां उद्देशक
१५. इसी प्रकार ये ग्यारह उद्देशक प्रथम- समय के कृष्णलेश्य - कृतयुग्म कृतयुग्म-संज्ञी - -पंचेन्द्रिय-जीवों के विषय में बतलाना चाहिए। पहला, तीसरा और पांचवां उद्देशक समान गमक वाले हैं, तथा शेष आठ उद्देशक समान गमक वाले हैं।
१६. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है।
तीसरा-चौदहवां संज्ञी - महायुग्म - शतक
(तीसरा शतक )
१७. इसी प्रकार नीललेश्य कृतयुग्म कृतयुग्म-संज्ञी - पंचेन्द्रिय-जीवों के विषय में भी शतक बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है - इन जीवों का संस्थान काल जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः दस सागरोपम में पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक होता है। इसी प्रकार इन जीवों की स्थिति के विषय में भी बतलाना चाहिए। इसी प्रकार तीन उद्देशकों (पहला, तीसरा, पांचवां) के विषय में बतलाना चाहिए, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है ।
१८. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
(चौथा शतक)
१९. इसी प्रकार कापोतलेश्य कृतयुग्म कृतयुग्म-संज्ञी - पंचेन्द्रिय-जीवों के विषय में भी शतक बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है- इन जीवों का संस्थान काल जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः तीन सागरोपम में पल्योपम-का- असंख्यातवां भाग अधिक होता है। इसी प्रकार इन जीवों की स्थिति के विषय में भी बतलाना चाहिए। इसी प्रकार तीन उद्देशकों (पहला, तीसरा, पांचवा) के विषय में भी बतलाना चाहिए, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है ।
२०. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
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(पांचवां शतक)
२१. इसी प्रकार तेजोलेश्य - कृतयुग्म - कृतयुग्म-संज्ञी - पंचेन्द्रिय-जीवों के विषय में भी शतक बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है - इन जीवों का संस्थान काल जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः दो सागरोपम में पल्योपम-का- असंख्यातवां भाग अधिक होता है। इसी प्रकार इन जीवों की स्थिति के विषय में भी बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है - ये जीव नोसंज्ञोपयुक्त भी होते हैं । इसी प्रकार तीन उद्देशकों (पहला, तीसरा, पांचवां ) के विषय में भी बतलाना चाहिए, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है
२२. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
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