________________
श. ४० का अंतर्शतक ६-१० : सू. १७-३२
भगवती सूत्र
(छट्ठा शतक) १७. जैसा तेजोलेश्य-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीवों के विषय में शतक बतलाया गया वैसा ही पद्मलेश्य-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीवों के विषय में भी शतक बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है-इन जीवों के संस्थान-काल जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः दस-सागरोपम-में-अन्तर्मुहर्त्त-अधिक होता है। इसी प्रकार इन जीवों की स्थिति भी बतलानी चाहिए, केवल इतना अन्तर है यहां अन्र्तुहूर्त अधिक नहीं बतलाना चाहिए, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है। इसी प्रकार इन पांचों शतकों में जैसा कृष्णलेश्य-शतक में गमक बतलाया गया वैसा ही जानना चाहिए यावत् 'अनन्त बार' तक। २४. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते ! वह ऐसा ही है। (सातवां शतक) २५. शुक्ललेश्य-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीवों के विषय में शतक औधिक शतक (भ. ४०।१-५) में बतलाया गया है वैसा बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है-इन जीवों के संस्थान-काल और स्थिति जैसा कृष्णलेश्य-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव-विषयक-शतक में बतलाया गया वैसा बतलाना चाहिए, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है, यावत् 'अनन्त बार' तक। २६. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (आठवां शतक) २७. भन्ते! भवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं.....? जैसा कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव-विषयक-प्रथम (अन्तर)-शतक में बतलाया गया वैसा भवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव-विषयक-आलाप में बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है२८. सभी प्राण (भूत, जीव और सत्त्व क्या कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीवों के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं)? गौतम! वह अर्थ संगत नहीं है, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है। २९. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (नवां शतक) ३०.भन्ते! कृष्णलेश्य-भवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं....? इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा जैसा औधिक कृष्णलेश्य-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव-विषयक-शतक बतलाया गया वैसा बतलाना चाहिए। ३१. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (दसवां शतक) ३२. भन्ते! इसी प्रकार नीललेश्य-भवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव-विषयक-शतक भी बतलाना चाहिए।
९४२