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श. ४० का पहला अंतर्शतक : उ. २-११ : दूसरा अंतर्शतक : उ. १-२ : सू. ६-१३
भगवती सूत्र
तक बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है-ये जीव स्त्री-वेदक भी होते हैं, पुरुष-वेदक भी होते हैं, नपुंसक-वेदक भी होते हैं, ये जीव संज्ञी होते हैं, असंज्ञी नहीं होते, शेष उसी प्रकार बतलाना चाहिए। इसी प्रकार सोलह ही युग्मों में इन जीवों का परिमाण आदि सभी बोल
वैसे ही बतलाने चाहिए। ७. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। तीसरा-ग्यारहवां उद्देशक ८. इसी प्रकार यहां भी ग्यारह उद्देशक उसी प्रकार बतलाने चाहिए (जैसे प्रथम समय के कृतयुग्म-कृतयुग्म-द्वीन्द्रिय-जीवों के विषय में बतलाये गये थे (भ. ३६/६)), पहला, तीसरा
और पांचवां उद्देशक समान गमक वाले तथा शेष आठ उद्देशक समान गमक वाले बतलाने चाहिए। चौथे, आठवें और दसवें उद्देशक में कोई विशेष नहीं बतलाना चाहिए। ९. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
दूसरा संज्ञी-पंचेन्द्रिय-महायुग्म-शतक
पहला उद्देशक १०. भन्ते! कृष्णलेश्य-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं.....? उसी प्रकार जैसा कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीवों के विषय में बतलाया गया है वैसा ही यहां बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है-इन जीवों के बन्ध और वेदना के विषय में ये जीव उदयी एवं उदीरक होते हैं, ये जीव कौन-सी लेश्या वाले होते हैं, ये जीव कितने प्रकार के कर्मों के बन्धक होते हैं, ये जीव संज्ञी होते हैं (अथवा असंज्ञी होते हैं), ये जीव कौन से कषाय वाले होते हैं, ये जीव कौन-से वेद के बन्धक होते हैं इन विषयों में जैसा कृतयुग्म-कृतयुग्म-द्वीन्द्रिय-जीवों के विषय में बतलाया गया वैसा बतलाना चाहिए। कृष्णलेश्य-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीवों के तीनों प्रकार के वेद होते हैं, ये अवेदक नहीं होते। इन जीवों के संस्थान-काल जघन्यतः एक समय. उत्कर्षतः तेतीस सागरोपम में अन्तर्मुहुर्त अधिक होता है। इसी प्रकार स्थिति के विषय में भी वैसा ही बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है-स्थिति में अन्तर्मुहूर्त अधिक नहीं बतलाना चाहिए। शेष जैसा इन विषयों के संबंध में प्रथम उद्देशक (भ. ४०।१-५) में बतलाया गया वैसा बतलाना चाहिए यावत् 'अनन्त बार' तक। इसी प्रकार सोलह ही युग्मों के विषय में बतलाना चाहिए। ११. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
दूसरा उद्देशक १२. भन्ते! प्रथम-समय के कृष्णलेश्य-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं....? जैसा संज्ञी-पंचेन्द्रिय के प्रथम उद्देशक (भ. ४०।६-९) में बतलाया गया
वैसा ही सम्पूर्ण से यहां बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है१३. भन्ते ! वे जीव कृष्णलेश्य हैं?
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