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श. २५ : उ. ७ : सू. ५६७-५६९
भगवती सूत्र अल्पाहारी कहलाता है, मुर्गी के अण्डे जितने बारह कवल का आहार करने वाला अपार्द्ध-अवमोदरिक कहलाता है, मुर्गी के अण्डे जितने सोलह कवल का आहार करने वाला द्विभाग-प्राप्त अवमोदरिक कहलाता है मुर्गी के अण्डे जितने चौबीस कवल का आहार करने वाला अवमोदरिक कहलाता है और मुर्गी के अण्डे जितने बत्तीस कवल का आहार करने वाला प्रमाण-प्राप्त कहलाता है। इससे एक ग्रास भी कम आहार करने वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ प्रकाम-रस-भोजी नहीं कहलाता। यह है भक्तपान-द्रव्य-अवमोदरिका। यह है द्रव्य-अवमोदरिका। ५६८. भाव-अवमोदरिका क्या है? भाव-अवमोदरिका अनेक प्रकार की प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. अल्प-क्रोध-क्रोध की अल्पता। २. अल्प-मान-मान की अल्पता। ३. अल्प-माया माया की अल्पता। ४. अल्प-लोभ-लोभ की अल्पता। ५. अल्प-शब्द-ऊंचे स्वर में न बोलना। ६. अल्प-झंझ-कलह का अभाव। ७. अल्प-तुमन्तुम-तुम तुम का अभाव। यह है भाव-अवमोदरिका । यह है अवमोदरिका। ५६९. भिक्षाचर्या क्या है? भिक्षाचर्या अनेक प्रकार की प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. द्रव्य-अभिग्रह-चरक–द्रव्य-विषयक अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला २. क्षेत्र-अभिग्रह-चरक–क्षेत्र-विषयक अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला ३. काल-अभिग्रह-चरक-काल-विषयक अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला ४. भाव-अभिग्रह-चरक-भाव-विषयक अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला ५. उत्क्षिप्त-चरक–दाता द्वारा अपने प्रयोजन से पाक-भाजन से निकाल कर रखी वस्तु के लेने का अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला ६. निक्षिप्त-चरक-पाक भाजन से न निकाली गई वस्तु के लेने का अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला। ७. उत्क्षिप्त-निक्षिप्त-चरक–पहले उत्क्षिप्त और बाद में निक्षिप्त की गई वस्तु के लेने का अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला। ८. निक्षिप्त-उत्क्षिप्त-चरक-पहले निक्षिप्त और बाद में उत्क्षिप्त की गई वस्तु के लेने का अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला। ९. वृत्त्यमान-चरक-वृत्ताकार में चक्र लगाकर देने वाले दाता के पास से वस्तु के लेने का अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला। १०. संह्रियमान-चरक-ठण्डा करने के लिए पात्र से निकाली हुई तथा ठण्डा होने पर पुनः पात्र में डाली हुई वस्तु के लेने का अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला। ११. उपनीत-चरक-किसी के द्वारा दाता को भेंट की गई वस्तु के लेने का अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला। १२. अपनीत-चरक–दी जाने वाली वस्तु के बीच में से कुछ वस्तु को निकाल कर अन्यत्र स्थापित की गई वस्तु के लेने का अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला। १३. उपनीत-अपनीत-चरक–दाता द्वारा जिस वस्तु के गुण का वर्णन कर पुनः उस गुण का निराकरण कर दिया जाये ऐसी वस्तु के लेने का अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला। १४. अपनीत-उपनीत-चरक–दाता द्वारा जिस वस्तु का एक गुण वर्णित हो तथा दूसरा गुण दोष युक्त बताया गया है ऐसी वस्तु के लेने का अभिग्रह ग्रहण कर भिक्षाचर्या करने वाला। १५. संसृष्ट-चरक-लिप्त–सने हुए हाथ आदि से दाता