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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ७ : सू. ४८०-४८७
गौतम ! देव-गति को प्राप्त होता है।
४८१. सामायिक-संयत देव गति को प्राप्त होता है तो क्या भवनवासी देवों में उपपन्न होता है ? वानमन्तर - देवों में उपपन्न होता है ? ज्यौतिष्क - देवों में उपपन्न होता है ? वैमानिक -देवों में उपपन्न होता है ?
गौतम ! सामायिक-संयत ( भवनवासी में ) उपपन्न नहीं होता जैसे कषायकुशील की वक्तव्यता (भ. २५/३३७)। इसी प्रकार छेदोपस्थापनिक संयत की वक्तव्यता । परिहारविशुद्धिक- संयत की पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३३६, ३३७) । सूक्ष्मसम्पराय - संयत की निर्ग्रन्थ की भांति वक्तव्यता (भ. २५ / ३३७) ।
४८२. यथाख्यात
.? पृच्छा (भ. २५/४८०,४८१) ।
गौतम ! इसी प्रकार यथाख्यात- संयत की भी वक्तव्यता । यावत् अजघन्य - अनुत्कृष्ट रूप में केवल अनुत्तर - विमान में उपपन्न होता है, कुछेक सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं।
४८३. भन्ते ! सामायिक संयत देव रूप में उपपन्न होता है तो क्या इन्द्र के रूप में उपपन्न होता है ? ( सामानिक-, त्रायत्रिंश-, लोकपाल, अहमिन्द्र देव के रूप में उपपन्न हो सकता है ) ...... ? पृच्छा (भ. २५ / ३३९) ।
गौतम ! अविराधना की अपेक्षा ( इन्द्र के रूप में उपपन्न होता है यावत् अहमिन्द्र के रूप में भी उत्पन्न होता है) कषायकुशील की वक्तव्यता (भ. २५ / ३४० ) । इसी प्रकार छेदोपस्थापनिक- (संयत) की भी वक्तव्यता । परिहार- विशुद्धिक- (संयत) की पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३३९) । शेष दो (सूक्ष्मसम्पराय - संयत और यथाख्यात - संयत ) के विषय में निर्ग्रन्थ की तरह बतलाना चाहिए (भ. २५/३४१) ।
४८४. भन्ते ! देव-लोकों में उपपद्यमान सामायिक संयत की स्थिति कितने काल की प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! जघन्यतः दो पल्योपम, उत्कृष्टतः तैंतीस सागरोपम। इसी प्रकार छेदोपस्थापनिक- (संयत) की भी वक्तव्यता ।
४८५. परिहारविशुद्धिक ....... .? पृच्छा (भ. २५/४८४) ।
गौतम ! जघन्यतः दो पल्योपम, उत्कृष्टतः अट्ठारह सागरोपम। शेष दोनों (सूक्ष्मसम्पराय - - संयत और यथाख्यात - संयत ) की निर्ग्रन्थ की भांति वक्तव्यता (भ. २५ / ३४५) ।
संयमस्थान - पद
४८६. भन्ते ! सामायिक संयत के कितने संयम स्थान प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! सामायिक - संयत के असंख्येय संयम स्थान प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार यावत् परिहार- विशुद्धिक- संयत के संयम स्थानों की वक्तव्यता ।
४८७. सूक्ष्मसम्पराय संयत.. गौतम ! सूक्ष्मसम्पराय - संयत के
.? पृच्छा (भ. २५/४८६) ।
अन्तर्मुहूर्त्त स्थिति वाले असंख्येय संयम - स्थान प्रज्ञप्त हैं ।
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