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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ७ : सू. ४८८-४९४
४८८. यथाख्यात-संयत........? पृच्छा (भ. २५/४८६)।
गौतम! अजघन्य-अनुत्कृष्ट रूप में केवल एक संयम-स्थान प्रज्ञप्त है। ४८९. भन्ते! इन सामायिक-, छेदोपस्थापनिक-, परिहारविशुद्धिक-, सूक्ष्मसम्पराय- और यथाख्यात-संयतों के संयम-स्थानों में कौन-किनसे अल्प? बहुत? तुल्य? या विशेषाधिक
गौतम! इनमें यथाख्यात-संयत का अजघन्य-अनुत्कृष्ट केवल एक संयम-स्थान सबसे अल्प है, सूक्ष्मसम्पराय-संयत के अन्तर्मुहूर्त स्थिति वाले संयम-स्थान उससे असंख्येय-गुणा हैं, परिहारविशुद्धिक-संयत के संयम-स्थान इनसे असंख्येय-गुणा हैं, सामायिक-संयत और छेदोपस्थापनिक-संयत-इन दोनों के संयम-स्थान परस्पर तुल्य तथा परिहारविशुद्धिक-संयत के संयम-स्थानों से असंख्येय-गुणा हैं। निकर्ष-पद ४९०. भन्ते! सामायिक-संयत के कितने चारित्र-पर्यव प्रज्ञप्त हैं? गौतम! अनन्त चारित्र-पर्यव प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार यावत् यथाख्यात-संयत के चारित्र-पर्यवों
की वक्तव्यता। ४९१. भन्ते! एक सामायिक-संयत सजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा दूसरे सामायिक-संयत के चारित्र-पर्यवों से क्या हीन है? तुल्य है? अभ्यधिक है?
गौतम! स्यात् हीन हैं-षट्स्थानपतित (भ. २५/३५०) की वक्तव्यता। ४९२. भन्ते! सामायिक-संयत विजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा छेदोपस्थापनिक-संयत के चारित्र-पर्यवों से (क्या हीन है? तुल्य है? अभ्यधिक है?)......पृच्छा (भ. २५/४९१)। गौतम! स्यात् हीन हैं-षट्स्थान पतित (भ. २५/३५०) की वक्तव्यता। इसी प्रकार परिहारविशुद्धिक-संयत की भी वक्तव्यता। ४९३. भन्ते! सामायिक-संयत विजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा सूक्ष्मसम्पराय-संयत के चारित्र-पर्यवों से (क्या हीन है?......) पृच्छा (भ. २५/४९१)। गौतम! हीन है, तुल्य नहीं है, अभ्यधिक नहीं है, अनन्त-गुणा-हीन है। इसी प्रकार यथाख्यात-संयत के चारित्र-पर्यवों की वक्तव्यता। इसी प्रकार छेदोपस्थापनिक-संयत की भी अधोवर्ती तीनों (सामायिक-संयत, छेदोपस्थापनिक-संयत, परिहारविशुद्धिक-संयत) से षट्स्थान-पतित तथा उपरिवर्ती दो (सूक्ष्मसम्पराय-संयत और यथाख्यात-संयत) से उसी प्रकार (भ. २५/४९३) की भांति अनन्त-गुणा-हीन वक्तव्य है। परिहार-विशुद्धिक-संयत की छेदोपस्थापनिक-संयत की भांति वक्तव्यता। ४९४. भन्ते! सूक्ष्मसम्पराय-संयत विजातीय संयम स्थानों के संयोजन की अपेक्षा सामायिक-संयत के चारित्र-पर्यवों से (क्या हीन है?........) पृच्छा (भ. २५/४९३)।
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