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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ७: सू. ४७५-४८० ४७५. भन्ते ! परिहारविशुद्धिक- संयत क्या (स्वलिंग में होता है ? अन्यलिंग में होता है ? गृहिलिंग में होता है) पृच्छा (भ. २५/४७४)।
गौतम! द्रव्यलिंग की अपेक्षा भी और भावलिंग की अपेक्षा भी स्वलिंग में होता है, अन्यलिंग में नहीं होता, गृहिलिंग में नहीं होता। शेष दो सूक्ष्मसम्पराय संयत और यथाख्यात की सामायिक - संयत की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४७४) ।
शरीर - पद
४७६. भन्ते! सामायिक संयत कितने शरीरों से संपन्न होता है?
गौतम ! सामायिक - संयत तीन शरीरों अथवा चार शरीरों अथवा पांच शरीरों से संपन्न होता हैं जैसे कषाय- कुशील की वक्तव्यता (भ. २५ / ३२५) । इसी प्रकार छेदोपस्थापनिक - संयत की भी वक्तव्यता । शेष (परिहारविशुद्धिक- संयत, सूक्ष्मसम्पराय संयत और यथाख्यात- संयत) की पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३२३)।
क्षेत्र - पद
४७७. भन्ते ! क्या सामायिक संयत कर्मभूमि में उत्पन्न होता है ? अकर्मभूमि में उत्पन्न होता है ?
गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा बकुश की भांति वक्तव्यता (भ. २५ / ३२७) । इसी प्रकार छेदोपस्थापनिक संयत की भी वक्तव्यता । परिहारविशुद्धिक- संयत पुलाक की भांति वक्तव्यता । शेष दो (सूक्ष्मसम्पराय संयत और यथाख्यात - संयत) की सामायिक संयत की भांति वक्तव्यता (भ. २५ / ४७६) ।
काल-पद
४७८. भन्ते ! सामायिक संयत क्या अवसर्पिणि-काल में होता है ? उत्सर्पिणि-काल में होता है ? नो- अवसर्पिणि–नो - उत्सर्पिणि-काल में होता है ?
गौतम ! अवसर्पिणि-काल में, बकुश भांति वक्तव्यता (भ. २५/३३२- ३२५) । इसी प्रकार छेदोपस्थापनिक-(संयत) की भी वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है - जन्म और सद्भाव की अपेक्षा चारों ही प्रतिभागों में नहीं होता, संहरण की अपेक्षा किसी भी एक भाग में हो सकता है, शेष पूर्ववत् ।
४७९. परिहारविशुद्धिक- (संयत).
.? पृच्छा (भ. २५/४७८) ।
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गौतम ! अवसर्पिणि-काल में होता है अथवा उत्सर्पिणि-काल में होता है, नो-अवसर्पिणि–नो-उत्सर्पिणि-काल में नहीं होता । यदि अवसर्पिणि-काल में होता है - लाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५ / ३२९) । उत्सर्पिणि-काल में भी पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५ / ३३०) सूक्ष्मसम्परायिक - (संयत) की भांति वक्तव्यता । इसी प्रकार यथाख्यात- (संयत) की भी वक्तव्यता ।
गति - पद
४८० भन्ते ! सामायिक संयत काल-गत होने पर किस गति को प्राप्त होता है ?
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