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श. २५ : उ. ७ : सू. ४६७-४७४
भगवती सूत्र गौतम! प्रतिषेवक होता है अथवा अप्रतिषेवक होता है। यदि प्रतिषेवक होता है तो क्या मूलगुण-प्रतिषेवक होता है....शेष पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३०८)। जैसे सामायिक-संयत की वक्तव्यता, उसी प्रकार छेदोपस्थापनिक-संयत की भी वक्तव्यता। ४६८. परिहारविशुद्धिक ..........? पृच्छा (भ. २५/४६७)। गौतम! प्रतिषेवक नहीं होता, अप्रतिषेवक होता है। इसी प्रकार यावत् यथाख्यात-संयत की वक्तव्यता। ज्ञान-पद ४६९. भन्ते! सामायिक-संयत कितने ज्ञानों से संपन्न होता है? गौतम! वह दो अथवा तीन अथवा चार ज्ञानों से संपन्न होता है। इसी प्रकार जैसा कषाय-कुशील की भांति भजना से चार ज्ञान होते हैं (भ. २५/३१३)। इसी प्रकार यावत् सूक्ष्मसम्पराय-संयत की वक्तव्यता। यथाख्यात-संयत के भजना से पांच ज्ञान होते हैं (भ. ८/१०५)। ४७०. भन्ते! सामायिक-संयत कितने श्रुत का अध्येता होता है? गौतम! सामायिक-संयत जघन्यतः आठ प्रवचन-माता का अध्येता होता है, जैसे कषाय-कुशील की वक्तव्यता (भ. २५/३१७)। इसी प्रकार छेदोपस्थापनिक-संयत की वक्तव्यता। ४७१. परिहारविशुद्धिक-संयत........? पृच्छा (भ. २५/४७०)। गौतम! जघन्यतः नवम पूर्व की तीसरी आचार-वस्तु, उत्कृष्टतः असम्पूर्ण दस पूर्वो का अध्येता होता है। सूक्ष्मसंपराय-संयत की सामायिक-संयत (भ. २५/४७०) की भांति वक्तव्यता। ४७२. यथाख्यात-संयत .........? पृच्छा (भ. २५/४७०)। गौतम! जघन्यतः आठ प्रवचन-माता का, उत्कृष्टतः चौदह-पूर्वो का अध्येता होता है।
अथवा वह श्रुत-व्यतिरिक्त (श्रुतातीत) होता है। तीर्थ-पद ४७३. भन्ते! क्या सामायिक-संयत तीर्थ में होता है? अतीर्थ में होता है? गौतम! सामायिक-संयत तीर्थ में होता है अथवा अतीर्थ में होता है, कषायकुशील की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३२१)। छेदोपस्थापनिक-संयत और परिहारविशुद्धिक-संयत की पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३१९)। शेष दो (सूक्ष्मसम्पराय-संयत और यथाख्यात-संयत)
की सामायिक-संयत की भांति वक्तव्यता। लिंग-पद ४७४. भन्ते! क्या सामायिक-संयत स्वलिंग में होता है? अन्यलिंग में होता है? गृहिलिंग में होता है? पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३२२)। इसी प्रकार छेदोपस्थापनिक-संयत की भी वक्तव्यता।
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