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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ७ : सू. ४६०-४६७
राग-पद ४६०. भन्ते! क्या सामायिक-संयत सराग होता है? वीतराग होता है? गौतम! सराग होता है, वीतराग नहीं होता। इसी प्रकार यावत् सूक्ष्मसम्पराय-संयत की वक्तव्यता। यथाख्यात-संयत की निर्ग्रन्थ (भ. २५/२९७,२९८) की भांति वक्तव्यता। कल्प-पद ४६१. भन्ते! क्या सामायिक-संयत स्थित-कल्प होता है? अस्थित-कल्प होता है?
गौतम! स्थित-कल्प होता है अथवा अस्थित-कल्प होता है। ४६२. छेदोपस्थापनीक-संयत........? पृच्छा (भ. २५/४६१)। गौतम! स्थित-कल्प होता है, अस्थित-कल्प नहीं होता। इसी प्रकार परिहारविशद्धिक संयत की भी वक्तव्यता। शेष दो (सूक्ष्मसम्पराय- और यथाख्यात-संयत) की सामायिक-संयत की भांति वक्तव्यता। ४६३. भन्ते! क्या सामायिक-संयत जिन-कल्प होता है? स्थविर-कल्प होता है? कल्पातीत होता है? गौतम! जिन-कल्प होता है अथवा स्थविर-कल्प होता है अथवा कल्पातीत होता है, कषाय-कुशील की भांति निरवशेष वक्तव्यता (भ. २५/३०२)। छेदोपस्थापनीय-संयत और परिहार-विशुद्धिक-संयत की बकुश की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३०१)। शेष दो (सूक्ष्मसम्पराय- और यथाख्यात-संयत) की निर्ग्रन्थ की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३०३)। निर्ग्रन्थ-पद ४६४. भन्ते! क्या सामायिक-संयत पुलाक होता है? बकुश यावत् स्नातक होता है (भ. २५/२७८)? गौतम! पुलाक होता है अथवा बकुश यावत् अथवा कषाय-कुशील होता है, निर्ग्रन्थ नहीं होता, स्नातक नहीं होता। इसी प्रकार छेदोपस्थापनिक-संयत की भी वक्तव्यता। ४६५. परिहारविशुद्धिक-संयत .......... ? पृच्छा। (भ. २५/४६४) गौतम! पुलाक नहीं होता, बकुश नहीं होता, प्रतिषेवणा-कुशील नहीं होता, कषाय-कुशील होता है, निर्ग्रन्थ नहीं होता, स्नातक नहीं होता। इसी प्रकार सूक्ष्मसम्पराय-संयत की भी
वक्तव्यता। ४६६. यथाख्यात-संयत .............? पृच्छा। (भ. २५/४६४) गौतम! पुलाक नहीं होता यावत् कषाय-कुशील नहीं होता, निर्ग्रन्थ होता है अथवा स्नातक होता है। प्रतिषेवणा-पद ४६७. भन्ते! क्या सामायिक-संयत प्रतिषेवक (दोष लगाने वाला) होता है? अप्रतिषेवक (दोष नहीं लगाने वाला) होता है?
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