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श. १५ : सू. १८३-१८६
भगवती सूत्र १८३. उस समय सुमंगल अनगार के द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर वह विमलवाहन राजा तत्काल आवेश में आ जायेगा, रुष्ट हो जायेगा, कुपित हो जायेगा, उसका रूप रौद्र हो जायेगा, क्रोध की अग्नि से प्रदीप्त होकर वह तीसरी बार भी रथ का अग्रिम हिस्सा सुमंगल
अनगार के ऊपर चढ़ाकर उन्हें उछाल कर नीचे गिराएगा। १८४. तब विमलवाहन राजा के द्वारा तीसरी बार भी गिराए जाने पर वह सुमंगल अनगार तत्काल आवेश में आकर यावत् क्रोध की अग्नि से प्रदीप्त होकर आतापन-भूमि से नीचे उतरेगा, नीचे उतरकर तैजस-समुद्घात से समवहत होगा, समवहत होकर सात-आठ पैर पीछे सरकेगा, पीछे सरककर विमल-वाहन राजा को घोड़े-सहित, रथ-सहित और सारथि
-सहित अपने तपः-तेज से कूटाघात की भांति एक प्रहार में राख का ढेर कर देगा। १८५. भन्ते! सुमंगल अनगार विमलवाहन राजा को घोड़े-सहित यावत् राख का ढेर कर कहां जायेगा? कहां उपपन्न होगा? गौतम! सुमंगल अनगार विमलवाहन राजा को घोड़े-सहित यावत् राख का ढेर करने के पश्चात् अनेक षष्ठ-षष्ठ-भक्त (दो-दो दिन का उपवास), अष्टम-अष्टम-भक्त (तीन-तीन दिन का उपवास), दशम-दशम-भक्त (चार-चार दिन का उपवास), द्वादश-द्वादश भक्त (पांच-पांच दिन का उपवास) (आदि से लेकर) अर्ध-मासक्षपण (पन्द्रह दिन का उपवास)
और मासक्षपण (तीस दिन का उपवास) के रूप में विचित्र तपःकर्म के द्वारा अपने आपको भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रामण्य-पर्याय को प्राप्त करेगा, प्राप्तकर एक मासिक संलेखना के द्वारा अपने आपको कृश बनाकर अनशन के द्वारा साठ भक्तों का छेदन कर, आलोचना और प्रतिक्रमण कर समाधिपूर्ण दशा में (दिवंगत होकर) ऊर्ध्वलोक में चन्द्रमा यावत् ग्रैवेयक विमानावास-शतक का व्यतिक्रमण कर सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देव-रूप में उपपन्न होगा। वहां देवताओं की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की प्रज्ञप्त है। वहां सुमंगल देव की स्थिति भी जघन्य और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की प्रज्ञप्त है। भंते! वह सुमंगल देव उस देवलोक से आयु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय के अनन्तर च्यवन कर कहां जायेगा? कहां उपपन्न होगा? गौतम! महाविदेह वास में सिद्ध होगा यावत् सब दुःखों का अन्त करेगा। १८६. भन्ते! सुमंगल अनगार के द्वारा घोड़े-सहित यावत् राख का ढेर कर दिए जाने पर राजा विमलवाहन कहां जायेगा? कहां उपपन्न होगा?
गौतम! सुमंगल अनगार के द्वारा घोड़े-सहित यावत् राख का ढेर कर दिए जाने पर राजा विमलवाहन अधःसप्तमी-पृथ्वी में उत्कृष्ट कालस्थितिवाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उवृत्त होकर मत्स्य के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल (मृत्यु) को प्राप्त कर दूसरी बार भी अधःसप्तमी-पृथ्वी में उत्कृष्ट कालस्थितिवाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उद्वृत्त होकर दूसरी बार भी मत्स्य के रूप में उपपन्न होगा। वहां
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