________________
भगवती सूत्र
श. १५ : सू. १७५-१८२ आदि के द्वारा इस अर्थ क विज्ञात होने पर राजा विमलवाहन ने 'यह न धर्म है, न तप है' ऐसा मानकर मिथ्या-विनय-पूर्वक इस वचन को स्वीकार किया। १७६. उस शतद्वार नगर के बाहर, उत्तर-पूर्व दिशि भाग में, सुभूमि-भाग नाम का उद्यान
होगा-सर्वऋतु में पुष्प, फल से समृद्ध- वर्णक। १७७. उस काल और उस समय में अर्हत् विमल के प्रपौत्र (प्रशिष्य) जाति-संपन्न, जैसे
धर्मघोष का वर्णक यावत् संक्षिप्त विपुल तेजोलेश्या और तीन ज्ञान से सम्पन्न। सुभूमि-भाग उद्यान के न अति दूर और न अति निकट निरन्तर बेले-बेले की तपः-साधना के द्वारा, दोनों भुजाओं को ऊपर उठाकर सूर्य के सामने आतापन-भूमि में आतापना लेता हुआ विहरण
करेगा। १७८. एक दिन राजा विमलवाहन रथचर्या करने के लिए निर्गमन करेगा। १७९. सुभूमि-भाग उद्यान के न अति दूर और न अति निकट राजा विमलवाहन रथचर्या करता हुआ सुमंगल (नामक) अनगार को निरन्तर बेले-बेले तपःकर्म करता हुआ आतापन-भूमि में दोनों भुजाएं ऊपर उठाकर सूर्य के सामने आतापना लेता हुआ देखेगा, देखकर वह (राजा) तत्काल आवेश में आएगा. रूष्ट हो जाएगा, कुपित हो जाएगा, उसका रूप रौद्र हो जाएगा, क्रोध की अग्नि में प्रदीप्त होकर रथ का अग्रिम हिस्सा सुमंगल अनगार के ऊपर चढ़ाकर उन्हें
उछाल कर नीचे गिराएगा। १८०. तब वह सुमंगल अनगार विमलवाहन राजा के द्वारा रथ के अग्रिम हिस्से से गिराए जाने पर धीरे-धीरे उठेंगे, उठ कर आतापन-भूमि में दूसरी बार दोनों भुजाएं ऊपर उठाकर सूर्य के सामने आतापना लेते हुए विहरण करेंगे। १८१. तब वह विमलवाहन राजा दूसरी बार भी रथ के अग्रिम हिस्से से सुमंगल अनगार को
ऊपर उछाल कर नीचे गिराएगा। १८२. तब वह सुमंगल अनगार विमलवाहन राजा के द्वारा रथ के अग्रिम हिस्से से दूसरी बार गिराए जाने पर धीरे-धीरे उठेगे, उठ कर अवधि (ज्ञान) का प्रयोग करेंगे, प्रयोग कर विमलवाहन राजा के अतीत-काल को देखेंगे, देखकर विमलवाहन राजा को इस प्रकार कहेंगे तुम विमलवाहन राजा नहीं हो, तुम देवसेन राजा नहीं हो, तुम महापद्म राजा नहीं हो, तूं इससे पूर्व तीसरे भव में गोशाल नामक मंखलिपुत्र था-श्रमणघातक यावत् छद्मस्थ-अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हुआ था, उस समय यद्यपि सर्वानुभूति अनगार ने प्रभु होने पर भी तुम्हें सम्यक् सहन किया, क्षमा की, तितिक्षा की, अधिसहन किया; उस समय यद्यपि सुनक्षत्र अनगार ने प्रभु होने पर भी तुम्हें सम्यक् सहन किया, क्षमा की, तितिक्षा की, अधिसहन किया; उस समय श्रमण भगवान् महावीर ने प्रभु होने पर भी तुम्हें सम्यक् सहन किया, क्षमा की, तितिक्षा की, अधिसहन किया; किन्तु निश्चित ही मैं ऐसा नहीं हूं जो तुम्हें उस प्रकार सम्यक् सहन करूंगा, क्षमा करूंगा, तितिक्षा करूंगा, अधिसहन करूंगा; मैं तो तुम्हें घोड़े-सहित, रथ-सहित और सारथि-सहित मेरे तपःतेज से कूटाघात की भांति एक प्रहार में राख का ढेर कर दूंगा।
५८३