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भगवती सूत्र
श. १५ : सू. १८६ पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर छट्ठी तमा-पृथ्वी में उत्कृष्ट काल-स्थिति वाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उद्वृत्त होकर स्त्री के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर दूसरी बार भी छट्ठी तमा-पृथ्वी में उत्कृष्ट काल-स्थिति वाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उवृत्त होकर दूसरी बार भी स्त्री के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर पांचवीं धूमप्रभा-पृथ्वी में उत्कृष्ट काल-स्थिति वाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उवृत्त होकर उरःपरिसर्प-(पेट के बल पर चलने वाले सांप) के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर दूसरी बार भी धूमप्रभा-पृथ्वी में उत्कृष्ट काल-स्थिति वाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उद्वृत्त होकर दूसरी बार भी उरपरिसर्प के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर चौथी पंकप्रभा-पृथ्वी में उत्कृष्ट काल-स्थिति वाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उवृत्त होकर सिंह के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर दूसरी बार भी चौथी पंकप्रभा-पृथ्वी में उत्कृष्ट काल-स्थिति वाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उवृत्त होकर दूसरी बार भी सिंह के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर तीसरी बालुकाप्रभा-पृथ्वी में उत्कृष्ट काल-स्थिति वाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उवृत्त होकर पक्षी के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर दूसरी बार भी तीसरी बालुकाप्रभा-पृथ्वी में उत्कृष्ट काल-स्थिति वाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उवृत्त होकर दूसरी बार भी पक्षी के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर दूसरी शर्कराप्रभा-पृथ्वी में उत्कृष्ट काल-स्थिति वाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उवृत्त होकर सरीसृप के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर दूसरी बार भी दूसरी शर्कराप्रभा-पृथ्वी में उत्कृष्ट काल-स्थिति वाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उवृत्त होकर दूसरी बार भी सरीसृप के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर इस