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भगवती सूत्र
श. १५ : सू. ११९-१२२
आबाधा, व्याबाधा अथवा छविच्छेद न करते हुए, मंखलिपुत्र गोशाल को आजीवक स्थविरों ने देखा, देखकर उन्होंने मंखलिपुत्र गोशाल के पास से अपने आप अपक्रमण किया, अपक्रमण कर जहां श्रमण भगवान् महावीर थे वहां आए, आकर श्रमण भगवान् महावीर को दायीं ओर से प्रारम्भ कर तीन बार प्रदक्षिणा की, प्रदक्षिणा कर वंदन - नमस्कार किया, वंदन-नमस्कार कर भगवान् महावीर को स्वीकार कर विहार करने लगे। कुछ आजीवक स्थविर मंखलिपुत्र गोशाल को ही स्वीकार कर विहार करने लगे ।
गोशाल का प्रतिक्रमण - पद
१२०. मंखलिपुत्र गोशाल जिस प्रयोजन के लिए शीघ्र आया, उस प्रयोजन को सिद्ध न कर पाने पर, दिशाओं की ओर दीर्घ दृष्टिपात करते हुए, दीर्घ और गर्म निःश्वास लेते हुए, दाढी के बालों को नोचते हुए, गर्दन के पृष्ठ भाग को खुजलाते हुए, कूल्हे के भाग का प्रस्फोट करते हुए, हाथों को मलता हुआ, दोनों पैरों को भूमि पर पटकते हुए 'हा हा, अहो' इस प्रकार बोलता हुआ श्रमण भगवान् महावीर के पास से, कोष्ठक चैत्य से प्रतिनिष्क्रमण किया, प्रतिनिष्क्रमण कर जहां श्रावस्ती नगरी थी, जहां हालाहला कुंभकारी का कुंभकारापण था, वहां आया, आकर हालाहला कुंभकारी के कुंभकारापण में आम्रफल को हाथ में लेकर मद्यपानक को पीते हुए, बार-बार गाते हुए, बार-बार नाचते हुए, बार बार हालाहला कुंभकारी को प्रणाम करते हुए मिट्टी के बर्तन में रहे हुए आतञ्चन उदक से अपने गात्र का परिसिंचन करता हुआ विहरण कर रहा था ।
गोशाल के द्वारा नानासिद्धान्त प्ररूपण-पद
१२१. आर्यो ! श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों को आमन्त्रित कर इस प्रकार कहा- आर्यो ! मंखलिपुत्र गोशाल ने मेरे वध के लिए जितने तेज का निसर्जन किया, वह सोलह जनपदों का घात, वध, उच्छेदन और भस्मीसात् करने के लिए पर्याप्त था, जैसे१. अंग २. बंग ३. मगध ४. मलय ५. मालव ६. अच्छ ७. वत्स ८. कौत्स ९. पाठ ११. वज्र १२. मौली १३. काशी १४. कौशल १५. अवध १६. शुम्भोत्तर ।
आर्यो! मंखलिपुत्र गोशाल हालाहला कुंभकारी के कुंभकारापण में आम्रफल को हाथ में लेकर मद्यपान को पीता हुआ, बार-बार गाता हुआ, बार-बार नृत्य करता हुआ, बार-बार हालाहला कुंभकारी को प्रणाम करता हुआ विहरण कर रहा है, वह अपने पाप कर्म के प्रच्छादन के लिए इन आठ चरमों की प्ररूपणा करता है, जैसे- १. चरम पान २. चरम गीत ३. चरम नृत्य. ४. चरम अंजलि ५. चरम पुष्कल - संवर्त्तक महामेघ ६. चरम सेचनक गंधहस्ती ७. चरम महाशिला कंटक - संग्राम ८. मैं इस अवसर्पिणी-काल के चौबीस तीर्थंकरों में चरम तीर्थंकर के रूप में सिद्ध होऊंगा यावत् सब दुःखों का अन्त करूंगा ।
आय! मंखलिपुत्र गोशाल मिट्टी के बर्तन में रहे हुए शीतल आतञ्चन - जल से गात्र का परिसिञ्चन करता हुआ विहरण कर रहा है, वह अपने पाप कर्म के प्रच्छादन के लिए इन चार पानकों और चार अपानकों की प्रज्ञापना करता है ।
१२२. वह पानक क्या ह ?
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