________________
भगवती सूत्र
श. १५ : सू. ११५-११९
श्रावस्ती में जन-प्रवाद-पद
११५. श्रावस्ती नगरी के शृंगाटकों, तिराहों, चौराहों, चौहटों, चार द्वार वाले स्थानों, राजमार्गों, मार्गों पर बहुजन परस्पर इस प्रकार आख्यान यावत् प्ररूपण करते हैं- देवानुप्रियो ! श्रावस्ती नगरी के बाहर कोष्ठक चैत्य में दो जिन संलाप करते हैं। एक कहता है-तुम पहले काल करोगे । एक कहता है - तुम पहले काल करोगे । उनमें कौन सम्यग्वादी है ? कौन मिथ्यावादी है । उनमें जो यथाप्रधान जन (मुख्य व प्रतिष्ठित व्यक्ति) है, वह कहता है - श्रमण भगवान् महावीर सम्यग्वादी है, मंखलिपुत्र गोशाल मिथ्यावादी है।
गोशाल से श्रमणों का प्रश्नव्याकरण-पद
११६. 'आर्यो !' –श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण-निर्ग्रथों को आमन्त्रित कर इस प्रकार कहा- 'आर्यो ! जैसे तृण का ढेर, काठ का ढेर, पत्रों का ढेर, छाल का ढेर, तुष का ढेर, भूसे का ढेर, गोमय (गोबर) का ढेर, अकुरडी का ढेर, अग्नि से जल जाने पर, अग्नि से झुलस जाने पर, अग्नि से परिणमित होने पर उसका तेज हत हो जाता है, उसका तेज चला जाता है, उसका तेज लुप्त हो जाता है, उसका तेज विनष्ट हो जाता है, इसी प्रकार मेरे वध के लिए अपने शरीर से तेज का निसर्जन कर मंखलिपुत्र गोशाल हत- तेज, गत-तेज, लुप्त-तेज और विनष्ट- तेज वाला हो गया है, इसलिए आर्यो ! तुम मंखलिपुत्र गोशाल को धार्मिक प्रतिस्मारणा से प्रतिस्मारित करो, धार्मिक प्रत्युपचार से प्रत्युचारित करो, अर्थों, हेतुओं, प्रश्नों, व्याकरणों और कारणों के द्वारा निरुत्तर - प्रश्न एवं व्याकरण-रहित करो । ११७. श्रमण भगवान् महावीर के इस प्रकार कहने पर श्रमण निर्गन्थों ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार किया, वंदन नमस्कार कर जहां मंखलिपुत्र गोशाल था वहां गए, जाकर मंखलिपुत्र गोशाल को धार्मिक प्रतिप्रेरणा से प्रतिप्रेरित किया, धार्मिक प्रतिस्मारणा से प्रतिस्मारित किया, धार्मिक प्रत्युपचार से प्रत्युपचारित किया। विभिन्न अर्थों, हेतुओं, प्रश्नों, व्याकरणों और कारणों के द्वारा निरुत्तर - प्रश्न एवं व्याकरण - रहित किया ।
११८. श्रमण-निर्ग्रन्थों द्वारा धार्मिक प्रतिप्रेरणा से प्रतिप्रेरित होने पर, धार्मिक प्रतिस्मारणा से प्रतिस्मारित होने पर, धार्मिक प्रत्युपचार से प्रत्युपचारित होने पर, विभिन्न अर्थों, हेतुओं, प्रश्नों, व्याकरणों और कारणों के द्वारा निरुत्तर - प्रश्न एवं व्याकरण-रहित किए जाने पर मंखलिपुत्र गोशाल तत्काल आवेश में आ गया, वह रुष्ट हो गया, कुपित हो गया, उसका रूप रौद्र हो गया । क्रोध की अग्नि से प्रदीप्त होकर वह श्रमण-निर्गन्थों के शरीर को किञ्चित आबाधा, अथवा व्याबाधा पहुंचाने में, अथवा छविच्छेद करने में समर्थ नहीं हुआ। गोशाल का संघभेद-पद
११९. श्रमण-निर्ग्रन्थों द्वारा धार्मिक प्रतिप्रेरणा से प्रतिप्रेरित किए जाने पर, धार्मिक प्रतिस्मारणा से प्रतिस्मारित किए जाने पर, धार्मिक प्रत्युपचार से प्रत्युपचारित किए जाने पर विभिन्न अर्थों, हेतुओं, प्रश्नों, व्याकरणों और कारणों के द्वारा निरुत्तर - प्रश्न एवं व्याकरण - रहित किए जाने पर मंखलिपुत्र गोशाल तत्काल आवेश में आ गया । रुष्ट हो गया, कुपित हो गया, उसका रूप रौद्र हो गया, क्रोध की अग्नि से प्रदीप्त होकर वह श्रमण-निर्गन्थों के शरीर को किञ्चित्
५७०