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११. सरधा
साधपणो
सेंठी ल्यों
धार, सार,
नवतत ज्यूं
भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० रो निरणों करों। सिवरमणी वेगी वरों।।
१२. रिषभ जिणंद कहें आम, चारित हिवडां थे आदरो।
तो पांमो अविचल ठांम, ते छे थानक सदा समाध रो।।
१३. थे आया राज रें काज, ते राज मारग छे नरग
संजम लेवो थे आज, ओ मारग मुगत में सरग
रो। रो।।