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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० १५. दांण गवादिक नों कर मूंकीयो ए, वळे मूक्यों करसण भाग।
मूंक्यों वळे दांण में ए, वळे मूक्यों कुंदंड कुमाग।।
१६. राय सेवग म जांओ केहनें घरे ए, कोइ धरणो म पाडो लिगार।
लेहणों नही मांगणो ए, इण वनीता नगर मझार।।
१७. वळे गणका अनेक नगरी मझे ए, नाटक करों ठाम ठांम।
गीत गावती थकी ए, मोटें मंडाण कके हगांम।।
१८. वळे नाटकीया नाटक करो ए, ते देता तालोटा ताम।
मुखसूं पद बोलता ए, नगरी माहे ठाम ठांम।।
१९. ठाम ठांम बांधो माला फूल री ए, वळे दडा फूलां रा जाण।
कीला करो हर्ष सूं ए, मन माहे उजम आंण।।
२०. धजा पताका ऊंचा करो ए, धजा विजय विजयंती ताम।
पंचवर्णी सोभती ए, ते पिण बांधो ठांम ठांम।।
२१. वाजंत्र सर्व चालू करो ए, वजावो रूडी रीत।
कांनां ने सुहामणा ए, ते पिण मीठां शब्दां सहीत।।
२२. इणविध चक्ररत्न तणा ए, करो महोछव जाण।
आठ दिवस लगें ए, म्हारी आगना सूंपो पाछी आंण।।
२३. ए वचन भरतेसर नो सुणी ए, श्रेणी प्रश्रेणी कीयो प्रमाण।
हरष सहीत सुणी ए, विने सहीत बोल्या वाण।।
२४. भरतजी रा समीप थी नीकल्या ए, कह्या ते सर्व करेय कराय।
पाछी तूंपी आगना ए, भरतजी बेंठा तिहां आय।।
२५. महिमा चक्ररत्न तणी ए, कीधी कराइ दिन आठ।
पिण जाणें छे माया कारमी ए, पिण मुगत जासी कर्म काट।।