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भरत चरित
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४-६. फिर निर्मल, पतले-पतले, चांदी जैसे श्वेत, उज्ज्वल चावल से चक्ररत्न के आगे स्वस्तिक, श्रीवत्स, नंद्यावर्त, वर्धमान, भद्रासन, मत्स्य, कलश तथा दर्पण, इन आठों ही मांगलिकों का आलेखन करते हैं तथा औपचारिक पूजा करते हैं-उसे एकाग्र होकर सुनें।
७-८. पाटल, मालती, चंपा, अशोक, पुन्नाग, नवमालती के पंचरंगे फूल अंजलि में भर-भर कर बिखेरते हुए घुटने-घुटने तक चक्ररत्न के चारों ओर ढेर लगाते हैं।
९. कुड़छे का दंड चंद्रप्रभ, वैडूर्य रत्नों का है। कंचनमणि रत्न से उस पर विभिन्न चित्र उकेरे हुए हैं।
१०. वैडूर्य रत्न के कड़छे में कृष्णागार, सेलारस आदि अनुपम सुगंधित धूप हैं।
११. इस प्रकार भरत राजा ने अनेक प्रकार के धूपों का उत्क्षेपन किया। उनकी सुरभि तरंगों से वातावरण महकने लगा।
१२. फिर सात-आठ पैर पीछे लौटकर नीचे बैठे और पहले की तरह ही तीन बार नमस्कार किया।
१३. चक्ररत्न को नमस्कार कर आयुधशाला से बाहर आए और उपस्थान शाला में आकर सिंहासन पर बैठे।
१४. अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि के लोगों को बुलाकर भरतजी ने सबको स्थान-स्थान पर चक्ररत्न प्राप्ति का अष्ट दिवसीय महोत्सव मनाने का आदेश दिया।