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भरत चरित
१५. गौ आदि का कर माफ कर किसानों का लगान माफ कर दिया। कुदंड और कुमार्ग का त्याग कर दिया।
१६. विनीता नगरी में कोई भी राजकर्मचारी किसी के घर न जाएं, किसी घर में छापा न मारें, न लगान मांगें।
१७. नगरी में स्थान-स्थान पर नृत्यांगनाएं सज-धजकर उत्साहपूर्वक गीत गाती हुई नृत्य करो।
१८. नगरी में स्थान-स्थान पर नर्तक तालियां बजाकर मुंह से गीत-पद बोलते हुए नृत्य करो।
१९. स्थान-स्थान पर फूलों की माला, पुष्प-गुच्छ बांधो । मन में हर्ष उत्साह से क्रीड़ा करो।
२०. स्थान-स्थान पर ऊंची से ऊंची पंचवर्णी शोभनीय विजय, वैजयंती ध्वजापताकाएं फहराओ।
२१. सब जगह कौशल से वाद्ययंत्र बजाने शुरू करो। उनकी मधुर ध्वनि कानों को सुखदायक प्रतीत हो।
२२. इस प्रकार आठ दिनों तक चक्ररत्न का महोत्सव करो और मेरी आज्ञा मुझे प्रत्यर्पित करो।
२३. श्रेणि-प्रश्रेणि के सभी लोगों ने प्रमुदित होकर भरतेश्वर के वचनों को सुन कर उन्हें मान्य किया और विनयपूर्वक वचन बोले।
२४. भरतजी के पास से निकलकर ऊपर जो कहा वैसा किया-कराया। पुनः भरतजी के पास आकर उनकी आज्ञा उन्हें प्रत्यर्पित की।
२५. आठ दिनों तक चक्ररत्न की महिमा करी-कराई। पर वे जानते हैं कि यह सब माया कारमी है। भरतजी सब कर्मों का नाश कर अंत में मुक्त होंगे।