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७. केइ
चंदण
कलस
भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ले हाथ रे, मंगलीक कारणे।
लारें लगी जाों चली ए।।
८. इम
लोटा
आरीसा
जांण
रे, थाल कटोरीयां। वळे केका लीया छे वीजणा ए।।
९. वळे रत्न
करंडीया
जाण
रे, फूल चंगेडीयां। गूंथी माला फूलां तणी ए।।
१०. वळे
चूर्ण
डाबडा
हस्त
रे, वणक वळेपण। गंध कसबोइ नांडाबडा ए।।
११. आभरण बहु मोला जांण रे, वळे लोम पूंजणी।
पुफ पाडल भरी चंगेडीयां ए।।
१२. केका लीया सिंघासण हाथ रे, ते रत्नां जड्या।
छत्र चमर केका लीया ए।
१३. तेल
कोष्ट
पुडा
अनेक
रे, चोवा मलीयागर। त्यांरा पुडा केका हाथे लीया ए।।
१४. मणोसिल
हींगलूं
हरताल
रे, वळे सरसव तणा। त्यांरा लीया डाबडा हाथ में ए।।
१५. केकां
ताल
वीजणा
ताम रे, हस्ते झालीया।
केकां धूप कुडछा हाथे लीया ए।।
१६. इत्यादिक
बोल
अनेक
रे, ते सारा जूजूआ। ___त्यांने दास्यां लीया छे हाथ में ए।।
१७. ते
भरत
नरिंद
में
पूठ रे, केरें चालती।
त्यांरी चाल घणी सुहांमणी ए।।