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दुहा १. जात वंस त्यांरो निरमलो, ते प्रसिध लोक
चारित लीधों चूंप सूं, आराध्यो रूडी
वदीत। रीत।।
ढाळ : ७४ (लय : धिन प्रभु राम जी)
धिन प्रभू आदि जी, धिन त्यांरा साध जी।। श्री आदेसर सासन वरतें, ऋषभशेण गणधार बे। त्यांरा सासन माहे हूआ मुनीवर, भरत मोटा अणगार बे।
१.
२. ऋषभशेण आदि दे सगला, चोरासी गणधार बे।
सहंस चोरासी साध मुनीसर, हूआ मोटा अणगार बे।।
३. त्यांमें वीस सहंस मुनी केवल उपाया, करे करमां रो सोख बे।
ते छुटा संसार दावानल थी, जाय विराज्या मोख बे।।
४. ब्राह्मी आदि दे वडी वडी सतीयां, अजीया हुइ तीन लाख बे।
ते गुणसागर गुणां री आगर, त्यांरी दीधी तीर्थंकर साख बे।।
५. त्यांरी चालीस सहंस अर्जीया उतकष्टी, त्यां उपजायो केवलग्यांन बे।
ते कर्म खपाए मुगते पोहती, ध्याए निरमल ध्यान बे।।
६. शेष साध साधवीयां सगली, श्रावक श्रावका जांण बे।
ते करणी कर गया देवलोके, ते वेगा जासी निरवांण बे।।
७. एक लाख पूर्व लग मारग दीपायो, ते आदेसर आप बे।
तिरण तारण श्री प्रथम जिनेसर, मेट्यों घणां रो संताप बे।।