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दोहा
१. उनका जाति-वश निर्मल था। लोक प्रसिद्ध था। उन्होंने उत्साह से चारित्र लिया और सम्यक् रूप से उसकी आराधना की।
ढाळ : ७४
आदि प्रभु धन्य हैं। उनके साधु धन्य हैं। १. श्री आदीश्वरजी के शासन में ऋषभसेन गणधर हुए। उनके शासन में भरत बड़े अणगार हुए।
२. उनके ऋषभसेन आदि चौरासी गणधर हुए। चौरासी हजार बड़े-बड़े अणगार हुए।
३. उनमें से बीस हजार मुनियों ने कर्मों को सोख कर केवलज्ञान प्राप्त किया। वे संसार रूपी दावानल से छूटकर मोक्ष में विराजमान हो गए।
४. ब्राह्मी-सुंदरी आदि तीन लाख बड़ी-बड़ी आर्याएं हुईं। वे गुण की सागर, गुण की आगर थीं। तीर्थंकरों ने उनकी साक्षी दी।
५. उनमें से चालीस हजार से अधिक आर्यिकाओं ने केवलज्ञान प्राप्त किया। वे निर्मल ध्यान ध्याकर कर्मों को क्षय कर मुक्ति में पहुंची।
६. शेष सारे साधु-साध्वियां, श्रावक-श्राविकाएं साधना कर देवलोक गए। वे शीघ्र ही मुक्ति में जाएंगे।
७. आदीश्वरजी ने स्वयं एक लाख पूर्व तक मार्ग का उद्योत किया। वे स्वयं तिरने वाले तथा दूसरों को तैराने वाले प्रथम तीर्थंकर थे। उन्होंने अनेक लोगों का संताप मिटाया।