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१.
दुहा कोई वेंरी दुसमण नही तेहनें, सुखे करें छे राज। मन रा मनोरथ पूरतो थकों, करें मन चिंतवीया काज।।
२. राज करें , निरभय थका, दिन दिन इधिक अणंद।
कांम भोग मनोगन भोगवें, षटखंड केरों , इंद।।
३. काल गमावें काम भोग में, चिंता फिकर नही छे लिगार।
भरत नरिंद रा सुखां तणों, पूरो कह्यों न जायें विसतार।।
४. एहवा सुख आए मिल्या, पूर्व तपनों फल जाण।
तप करतां पुन बांधीया तके, उदे हुआ छे आण।।
५. कथा माहे इम कह्यों, भरतजी करें छे विचार।
रखे काम भोग में खूतों थकों, काल कर जाऊं राज मझार।।
६. महारें लेंणों छे निश्चें साधुपणों, काम भोग देणा , छिटकाय।
रखे भूल पडे यूंही रहूं, तो याद आवे ते करणों उपाय।
ढाळ : ६३ (लय : कुमार इसो मन चिंतवे)
. भरत भावे रूडी भावना। १. हिवें भरत नरिंद मन चिंतवें, म्हारें लेंणों छे निश्चें संजम भार।
जो हूं काल करूं इण राज में, तो हूं जाऊं रे निश्चें नरक मझार।