________________
३९०
१३. रसोइदार तीनसों नें साठ छें जी, वळे आग्याकारी छें भरत ना जी, वळे
१४. घोडा हाथी रथ अति घणा जी, चोंरासी चोंरासी वळे पायदल छिनूं कोड छें जी, त्यांरी सूतर में छें
१५. बोहीत्तर सहंस नगर कह्या जी, गांम छें छीनूं अड़तालीस सहंस पाटण अछें जी, दलबल पायक
भिक्षु वाङ्मय - खण्ड - १०
बुधवंत चतुराइदार । श्रेणी प्रसेणी अठार ||
१६. बत्तीस सहंस जनपद देस छें जी, द्रोणमुख छें निनांणूं हजार। चोवीस सहंस कवड कह्या जी, चोवीस सहंस मंडप विचार ।।
हजार ।
जी,
१७. सोना रूपादिक तेहना
आगर वीस सोलें सहंस खेड कह्या जी, सोलें सहंस संबाह सुविचार ।।
१९. चुल हेमवंत नें समुद्र
विचें जो, सगलें भरतजी संपूर्ण भरत खेतर मझे जी, सारा आंण करें
१८. छपन अंतरोदक पांणी मझे जी, गुणचास भीलां पर कुराज । इत्यादिक सगलाइ तेहनों जी, अधिपती भरत
माहाराज ॥
२०. सार्थवाह राजा सहू जी, इत्यादिक सगलाइ त्यांरो अधिपतीपणों करतो थको जी, विचरें छें मोटें
२१. महल
बत्तीस
लाख ।
साख ॥।
कोड ।
जोड ।।
बयालीस भोमीया जी, चोबारा विध नाटक पडें जी,
एम गमावें
री आंण । परमाण ।।
जांण ।
मंडांण ॥
चित्रसाल |
काल ॥