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भरत चरित
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२. भरतजी के निन्नाणवें भाई संसार को अस्थिर जानकर आदिनाथ के सम्मुख संयम का पालन कर रहे हैं ।
३. भरतजी की माताजी मोरांदेवी शुभ भावना भा कर केवलज्ञानी होकर मुक्ति गईं। शालवृक्ष का परिवार भी शाल जैसा ही होता है ।
४. सितत्तर लाख पूर्व बीतने पर भरतजी साहस के साथ राज्यासीन हुए। एक हजार वर्षों तक वे बड़े मांगलिक राजा के रूप में रहे ।
५. एक हजार पूर्व तक वे मांडलिक राजा के रूप में सिंह तरह ओगाज करते रहे। फिर पुण्ययोग से उन्हें चक्रवर्ती पद के सारे साज प्राप्त हुए।
६. साठ हजार वर्षों तक उन्होंने भरतक्षेत्र में आज्ञा का प्रवर्तन किया। सभी राजाओं को उन्होंने वश में किया। उनके सामने किसी का जोर नहीं चलता ।
७. चौदह रत्न तथा नौ निधान उनके घर में प्रकट हुए। सोलह हजार देवता तथा बत्तीस हजार राजा उनकी सेवा करते हैं ।
८. बत्तीस हजार राजाओं की बत्तीस हजार पुत्रियां कल्याणिकाएं उन्हें ऋतु - ऋतु का सुख प्रदान करती हैं ।
९. एक-एक कल्याणिका के साथ दो-दो सेविकाएं होने से भरतजी के अंत:पुर की संख्या एक लाख बाणवें हजार हो गई।
१०. चक्रवर्ती इतने रूप बनाकर उनके साथ भोग भोगता हैं। पूर्व पुण्य के उदय से यह सारा योग मिला।
११. चौसठ हजार राजेश्वर मान का त्यागकर उनकी सेवा करते हैं । उन्हें ऐसे तेजस्व का प्रवर्तन किया कि उनके सामने किसी का जोर नहीं चलता ।
१२. बत्तीस प्रकार के अत्यंत आश्चर्य कारक विभिन्न नाटकों के बत्तीस हजार नर्तकों के धुंकार उठ रहे हैं ।