________________
३८८
२. भाइ
श्री
नीनांणू भरत ना आदेसर आगलें
___ भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० जी, जांणी इथर संसार। जी, पालें संजम भार।।
३. मोरा देवी मुगते गया जी, भावे भावना सार।
केवलग्यांनी वखाणीयों जी, साल रूंख रे साल पिरवार।।
४. सितंतर लाख पूर्व नीकल्या जी, जब राज बेंठा साहसीक।
एक सहंस वरस लगें रह्या जी, मोटा राजा मंडलीक।।
५. सहस वरस मंडलीक राजा रह्या जी, सीह जिम करता ओगाज।
पछे पुन जोग सूं आवी मिल्या जी, चक्रवत पदवी नां साज।।
६.
साठ सहस वरसां लगें जी, वरताइ भरत में आंण। वस कीया सहु भोमीया जी, केहनों न चालें प्रांण।।
७. चवदें रतन त्यारें घरे जी, वळे प्रगट्या नव निधान।
सोलें सहंस देवता सेवा करें जी, वळे बत्तीश सहंस राजांन।।
८. बत्तीस सहंस रितू किल्याणका जी, रितू रितूना सुख नी देणहार।
बत्तीस सहंस राजा री बेटीयां जी, ते किल्याणका बत्तीस हजार।।
९. ए चोसठ सहंस अंतेवरीजी, दोय दोय एकण लार।
गिणती आइ , एतली जी, एक लाख में बांणू हजार।।
१०. इतला रूप चक्रवत
पूर्व पुन उदें हुआ
करें जी, तेहसूं भोग भोग। जी, तिणसूं मिलीयो जोग।।
११. चोसठ सहंस राजेसरू जी, सेवा
तप वरतायों एहवों जी, केहनो
करें न
मन चालें
मोड। जोड।।
१२. बत्तीस सहंस नाटक पडें जी, त्यांरा उठ रह्या धुंकार।
इचर्यकारी अति घणा जी, ते जूआ जूआ बत्तीस परकार।।