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दोहा १. चक्ररत्न, छत्ररत्न, दंडरत्न तथा असिरत्न- ये चारएकेंद्रिय रत्न आयुधशाला में आकर उत्पन्न हुए।
२. चर्मरत्न, मणिरत्न तथा काकिणीरत्न- ये तीन एकेंद्रिय रत्न नौ निधान के श्रीघर में आकर उत्पन्न हुए।
३. सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, बढ़ईरत्न तथा पुरोहितरत्न- ये चार पंचेंद्रिय रत्न विनीता नगरी में उत्पन्न हुए।
४. अश्वरत्न तथा हस्तीरत्न- ये दोनों पंचेंद्रिय रत्न वैताढ्य पर्वत के मूल में आकर उत्पन्न हुए।
५. सुभद्रा नाम का स्त्रीरत्न वैताढ्य पर्वत की उत्तर दिशा में जहां विद्याधरों की श्रेणि है, उस स्थान में उत्पन्न हुआ।
६. इस प्रकार चौदह रत्नों की उत्पत्ति हुई। भरतजी उनके अधिपति हैं। उनकी ऋद्धि का वर्णन कर रहा हूं। चित्त लगाकर सुनें।
ढाळ : ६२
पुण्य का फल देखें। पुण्य-पाप दोनों के क्षीण होने से मुक्ति के सुख प्रकट होते
हैं
१. उस काल और उस समय में विनीता नाम की नगरी है। वहां लोग सुखपूर्वक रहते हैं। भरतजी वहां के महान् राजा हैं।