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भरत चरित
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३,४. देवताओं ने देवलोक के समान विनीता नगरी का निर्माण किया है। आप छह खंड के पृथ्वीपति स्वामी हैं। आप इसका लाखों पूर्व, करोड़ो पूर्व, करोड़ों-करोड़ों पूर्व तक पूर्ण ठाट-बाट से शासन करें।
५. जैसे तारों में चंद्रमा तथा देवताओं में इंद्र राज्य करते हैं वैसे ही आप प्रतिदिन सानंद विनीता में राज्य करें।
६. जैसे असुरकुमार में चमरेंद्र, नागकुमार में धरणेंद्र राज्य करते हैं वैसे ही आप दिन-प्रतिदिन सानंद विनीता में राज्य करें।
७. भरत नरेन्द्र की ओर निहार कर मुख से जय-विजय मांगलिक शब्दों का उच्चारण कर रहे हैं।
८. भरत नरेंद्र के विनीता नगरी में प्रवेश करते समय लोगों ने जो मांगलिक वचन मुंह से बोले थे उसी तरह सारा यहां विस्तार समझना चाहिए।
९-१०. बत्तीस सहस्र राजे, चार नररत्न, श्रेणि-प्रश्रेणि, सार्थवाह, सोलह हजार देवता आदि सभी आते हैं और इसी प्रकार प्रेमपूर्वक एक धार मांगलिक शब्द एवं आशीर्वाद बोल रहे हैं।
११. इस प्रकार बड़े आडंबर से भरतजी राज्यासीन हुए। मनचिंतित सारे मनोरथ सफल हो गए।
१२,१३. राज्याभिषेक के अनंतर भरतजी ने सेवक पुरुष को बुलाकर कहा- तू शीघ्र हस्ती के कंधे पर बैठकर विनीता के तिराहे, चौराहे, राजपथ आदि स्थानों में जाकर उच्च स्वर से साडंबर घोषणा करना।