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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ३. आ नगरी वनीता देवलोक सरीखी, देवतां नीपजाइ ताम।
राज कीजों तुम्हें एहनों, छ खंड रा पृथीपति साम।।
४. घणा लाखां गमे पूर्व लग आप, घणा कोडां थी लग पूर्व जांण।
घणा कोडा कोड पूर्वा लगें, राज कीजों थें मोटें मंडांण।।
५. तारां मझे राज करें चंदरमा, देवता माहे इंद्र माहाराज।
तिम राज कीजो वनीता मझे, सिझ जों मन वंछत काज।।
६.
असुर कुमार में राज करे चमइंद्र, नाग कुमार में धरिणंद। तिम राज कीजों वनीता मझे, दिन दिन इधिक आणंद।।
७. मुख मुख जय जय शबद कहें छे, वळे विजय शब्द विशेष।
मंगलीक शबद मुख उचारें, भरत नरिंद में देख देख।
८. वनीता नगरी माहे प्रवेस करतां, भरत नरिंद तिण वार।
जब मंगलीक मुख बोलता, तिण विध कहिणों सर्व विस्तार।।
९. बत्तीस सहंस राजा इम बोल्या, च्यारू रत्न पिण बोल्या एम।
श्रेणी प्रश्रेणी इम बोलीया, आसीस देता धर पेम।।
१०. सार्थवाहादिक सगला आया ते, मंगलीक बोल्या एकधार।
वळे इण हीज विध सर्व बोलीया, देवता पिण सोलें हजार।।
११. इण विध मोटें मंडाण करेनें, भरत जी बेठा राज।
फलीया मनोरथ तेहना, सरीया मन चिंतवीया काज।।
१२. राज अभीषेक करे भरत जी, सेवग पुरष नें कहें छे बोलाय। ___हस्ती खंधे तूं बेसनें, सताब सूं वनीता में जाय।।
१३. तीन च्यार मारग तिण ठांमें, चचर में महापंथ जांण।
तिहां मोटे-मोटे शब्दें करी, घोषणा कीजें मोटें मंडाण।।