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३६२ ३६. वळे नाटक
बत्तीस
हजार
भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ए, बत्तीस प्रकार ना।
त्यां संघातें परवरयों थकों ए।।
३७. अभीषेक मंडप रे
माहि रे, प्रवेस कीयों तिहां।
अभिषेक पीठ तिहां आवीया ए।
३८. अभीषेक-पीठ
ने
ताम
रे,
प्रदिखणा करी। पूर्व पावडीयां चढ्या ए॥
३९. तिहां रच्यों सिघासण ताम रे, तिण ठामें आयनें।
- बेठा सिघासण उपरें ए।।
४०. पूर्व
साह्मों मुख
राख
रे,
रूडी रीत सुं। बेठा सिंघासण उपरें ए।
४१. सेष
सहू
परवार
रे, ते
आवें किण विध। एक मना थइ सांभलों ए।
करें
मंडांण
रे, राज वेंसवा। पिण तिण में नही राचसी ए।।
४३. आंणे
सुमता
रस
पूर
रे, राज त्यागनें। इण भव जासी मुकत में ए॥