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दुहा १. ते वचन बोलें इष्ट कारीया, कंत कारीया वचन विशेख।
पीत कारी वचन रलीयांमणा, मनोज्ञ वचन बोलें छे अनेक।।
२. कल्याण में मंगलीक कारणी, इसडी वाणी बोले रह्या तांम।
तिण वांणी रा भेद अनेक छ, निरंतर बोलें छे ठाम ठांम।।
३.
अभिणंदता विरध वचन ,, ते बोलें , वचन आसीस। अभीथुणंता वचन सतुत ,, ते बोलें , नमणकर सीस।।
४. जय जय णंदा शब्द बोलें घणा, थारें होयजो विरध विशेख।
जय जय भद्दा शब्द कहें घणा, तुमनें होयजों किल्याण अनेक।।
५. वळे भरत जी नें देखनें, विकसत हुवा छे नेण।
वळे आसीस देता रूडी रीत तूं, किण विध बोलें गमता वेंण।।
ढाळ : ५५ (लय : वेग पधारो महल थी)
थें भला पधारया राजा भरत जी। १. थे अण जीतां में जीपजों, करों जीतां री प्रतिपाल।
थे जीता छे त्यां माहे वसो, इम बोलें वचन रसाल।
२. इंदर विराजें देवतां मझे, करें देवलोक माहे राज। - तिण विध राज तुम्हें करों, सीह ज्यूं करता ओगाज।।
३. चंदरमा तारां
तिण विध राज
मझे, तुम्हें
राज करों, भरत
करें
खेतर
श्रीकार। मझार।।