________________
दोहा
१. सभी विविध प्रकार के इष्टकारक, प्रीतिकारक, मनोज्ञ, कांत और रुचिकर वचन बोल रहे हैं ।
२. वे लगातार स्थान-स्थान पर कल्याणकारिणी, मंगलकारिणी अनेकरूपिणी वाणी बोल रहे हैं।
३. कुछ लोग अभिनंदन करते हुए यशोगान कर रहे हैं, कुछ लोग आशीर्वाद की भाषा बोल रहे हैं, कुछ लोग नत मस्तक होकर अभ्युत्थान मुद्रा में स्तवना कर रहे हैं।
४. कुछ लोग 'जय-जय नंदा', 'जय जय भद्दा' वचन बोल कर उनके कल्याण की कामना कर रहे हैं ।
५. भरतजी को देखकर उनके नयन उत्फुल्ल हो गए हैं। वे आशीष देते हुए इस प्रकार के रुचिकर वचन बोल रहे हैं ।
ढाळ : ५५
राजा भरतजी भले पधारे।
१. आप योगक्षेमकर हैं। आप सदा विजित लोगों के बीच निवास करें, ऐसे मधुर वचन बोल रहे हैं।
२. जैसे देवलोक में देवताओं के बीच इन्द्र विराजते हैं, राज्य करते हैं - उसी तरह आप राज्य करें । सिंहनाद की तरह आगाज करें।
1
३. जैसे चंद्रमा तारों के बीच श्रेयस्कर राज्य करता है उसी प्रकार आप भरत क्षेत्र राज्य करें।