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भरत चरित
१४,१५. उन लोगों में कुछ तो ज्ञाति-न्यातिजन थे, कुछ पारिवारिकजन थे। कुछ नगर के प्रतिष्ठित जन थे। उनके मान, प्रतिष्ठा और अधिकार के अनुसार भरतजी ने सम्यग् रूप से सबको यथोचित सम्मान-सत्कार दिया।
१६. सेवक और स्वामी की रीति के अनुसार मधुर वचन से संतुष्ट कर सबको विदा किया।
१७. भरतजी के विनीता नगरी राजधानी के बाहर उतरने की खबर हुई तो नगरी में घर-घर में खुशियां छा गईं।
१८. लोग उन्हें देखने के लिए अत्यंत उत्साहित हो गए। उत्कंठित होकर प्रतीक्षा करने लगे कि कब भरतजी के दर्शन करें।
१९. बहुत सारे लोग परस्पर मिलकर ऐसा कहने लगे कि आज भला दिन उदित हुआ है। भरतजी छहों ही खंडों को सिद्ध कर विनीता नगरी में आए हैं।
२०. भरतजी विदेशों को सिद्ध कर घर आए हैं। किसी को किंचित् भी दुःख नहीं देते। सबकी सार-संभाल करते हैं, इसलिए घर-घर में हर्ष हो रहा है।
२१. पुण्य के प्रताप से सब लोग हर्षित हैं। वे उस हर्ष को भी अनित्य जानकर उसे छोड़कर चारित्र ग्रहण कर कर्म काटकर मोक्ष में जाएंगे।