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१. हिवें
आवें
दुहा भरत राजंद तिण अवसरें, कर नगरी वनीता मझे, हरष घणों
मोटें मन
मंडांण। आण।
२. निरघोष वाजंत्र वाजतां थका, सीहनाद ज्यूं करता गूंजार।
निज भवन घर स्हांमां चालीयां, साथे लीयां रिध विसतार।।
३. वनीता राजध्यांनी तेह में, प्रवेस कीयों तिणवार।
कुण कुण महोछव देवता करें, ते सुणजों विसतार।।
ढाळ : ५४ (लय : राम पधारीया जी)
भरत पधारीया जी॥ भरत राजंद पधारीया जी, नगर वनीता तेह। त्यांरा महोछव करें , देवता जी, आंणी इधिक सनेह।
१.
२. एक एक देवता तिण
वनीता ने बाहिर भिंतरें
समें जी, आंणी पोरस पूर। जी, कचरों कर दीयो दूर।
३. एक एकीका देवता जी, करें महोछव आंम।
वनीता ने अभिंतर बाहिरे जी, पांणी छड़के ठाम ठांम।।
४. एक एकीका देवता जी,
वनीता नें अभिंतर बाहिरें
करवा जी, लीपें
लागा , आंम। छे ठाम ठांम।।
५. एक एकीका देवता जी, पांच वरणा रंगा नी ताम।
वनीता ने अभिंतर बाहिरें जी, धजा पताका बांधे ठाम ठांम।।