________________
३०८
भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१०
रिषभानंदण बाहुबल गिरवों
ढाळ : ५० (लय : रूघपति जीतो रे)
भरत नृप जीतो रे॥ धीर, भरत नृप जीतो रे। वडवीर, भरत नृप जीतो रे। गुणवंत, सूरो ने सतवंत।।
नो में
१. चक्र रत्न ने चालतो हो, वनीता साहमों जातों देख। ___नर नारी तिण अवसरें हो, हरषत हुआ वशेख॥
२. घर घर रंग वधावणा हो, घर घर मंगलाचार।
घर घर गावें गीतडा हो, मुख मुख जय जय कार।।
३. लोक सहू हरषत हूआ हो, निज घर आवा ताम।
उछरंग पांम्यों अति घणो हो, मन पांम्यों विसरांम।।
४.
छ खंड अखंडत भरत में हो, वरती भरत री आण। तिणसू चक्र घरां में चालीयो हो, कर मोटें मंडांण।।
५. मागध वरदांम प्रभास देव ने हो, जीत मनाइ आण।
सिंधु देवी जीत फतें करी हो, तिण आंण कीधी प्रमाण।।
६. वेताढगिरी देव जीपीयो हो, जीतो किरतमाली देव।
चूल हेमवंत देव नमावीयो हो, त्यांने कीया सेवग स्वयमेव।
७. गंगा देवी जीत सेवग करी हो, तिणनें आंण मनाय।
नमी विनमी विद्याधर जीपने हो, दीया छे पगां लगाय।।
८. नटमाली देवता भणी हो, जीते मनाइ आण।
नव निधान जीता पुन जोग सूं हो, ते हाजर हुआ प्रमाण।।