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भरत चरित
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ढाळ : ५०
भरत नृप जीत गया। ऋषभ का नंदन, बाहुबल का बड़ा भाई, धीर गौरवशाली, सूरवीर गुणवंत, सतवंत भरत राजा अब सर्व विजेता बन गया।
१. चक्ररत्न को विनीता की ओर चलता देखकर उस अवसर पर सभी नर-नारी अत्यंत हर्षित हुए।
२. घर-घर में रंग-बधाइयां बंटने लगी, मंगलाचार और गीत गाए जाने लगे। मुख-मुख पर जय-जयकार गूंजने लगी।
३. विजय यात्रा के सभी संभागी अपने घर लौटने के लिए हर्षित हुए। अत्यंत उत्साह जागा। मन को विश्राम मिला।
४. अखंड भरतक्षेत्र के छहों ही खंडों में भरतजी की आज्ञा का प्रवर्तन हुआ। इसीलिए चहल-पहल के साथ चक्र घर की ओर लौटने लगा।
५-९. भरतजी ने मागध देव, वरदाम देव, प्रभाष देव, सिंधु देवी, वैताढ्य गिरिदेव, कृतमाली देव, चूल हेमवंत देव, गंगा देवी, नमी-विनमी विद्याधर, नटमाली देव, इन सभी को जीतकर नतमस्तक बना दिया। अपनी आज्ञा का प्रवर्तन किया, उन्हें अपना सेवक बनाया। पुण्ययोग से नौ निधान को जीता। वे अपने आप उपस्थित हो गए। अपने बल से देव-देवियों को नतमस्तक किया, उन्हें अपनी आज्ञा स्वीकार करवाई। उनका उपहार स्वीकार किया और उन्हें विदा किया।