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दुहा १. नव निधान परगट हुआ, त्यांने जाणे लीया छे ताहि।
जब पोषधशाला थी नीकल्या, आया मंजण घर माहि।।
२. मंजण कीयों विध आगली, आया उवठाण साला माहि।
तिहां बेठा सिघासण ऊपरें, कहें , श्रेणी प्रश्रेणी में बोलाय॥
३. नव निधान माहरें आय परगट्या, तिणरा करो महोछव जाय।
जब सेणी प्रश्रेणी सुण हरखीया, कीया महोछव आय।।
४. अठाइ महोछव पूरा हुआं, कहें छे सेनापति ने बोलाय।
कहें जाओं तुम्हें देवाणूपीया, गंगा पेंलें दुजें खंड जाय।।
५. तिहां आंण मनाए माहरी, भेटणो लेइ सेवग ठहराय।
सेनापती सुण तिम हीज करे, गंगा नदी में पार जाय।।
६. भेटणों ले आंण मनायनें, पाछो आयो भरत जी रे पास।
आगे कह्यों तिम सगलोइ जांणजों, हिवें भोगवें सुख विलास।।
७. हिवें चक्र रत्न ते एकदा, आउधसाला थी नीकल्यों बार।
सहंस देवता सहीत परवस्यों थकों, ऊंचो गयों गगन मझार।।
८. वाजंत्र सबद पूरतो थकों, विजय कटक रे माहि।
मझोमझ थइ ने नीकल्यों, नेरत कुण वनीता दिस जाय।
९. वनीता साहमों जाता देखनें, घणो हरष्या भरत माहाराय।
कहें छे कोडंबी पुरुष बोलाय नें, हस्ती रत्न नें सज करों जाय।।