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भरत चरित
३०५ २५. अश्वरत्न वैरी पर विद्युत् की तरह गिरता है। अपने अभिराम गुण से वह स्वामी को जरा भी कष्ट नहीं आने देता।
२६. हस्तीरत्न हाथियों का अधिपति है। ऐसा लगता है जैसे अंजनगिरि खड़ा हो। उस पर नरपति इंद्र के प्रतिमान सुशोभित होते हैं।
२७. जिसके पास चौदह रत्न हैं, जिसके घर नौ निधान हैं, छह खंड का राज्य है वह राजा भाग्यशाली है।
२८. ऐसी ऋद्धि भरतजी को प्राप्त हुई है, पर वे इसे धूल के समान जानेंगे, संयम ग्रहण कर केवलज्ञान प्राप्त कर निर्वाण पद को पाएंगे।