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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० २५. अश्व रत्न वेरी ऊपरें रे, परें छे वीजली जिम ताम।
धणी में आल आवण दें नहीं रे, तिणमें गुण अभिरांम।।
२६. हाथी रत्न हाथ्यां रो अधिपती रे, जाणे ऊभों अंजण गिरी पाहड।
सोभे तिण ऊपर नरपती रे, इंद्र तणे उणीयार।।
२७ चवदें रत्न छे जिण घरे रे, जिण घरे नव निधांन।
जिण घर छ खंड रो राज , रे, ते भागबली छे राजांन।।
२८ एहवी रिध आए मिली रे, त्यांने जाणसी धूल समांण।
संजम लेने केवल उपाय ने रे, पांमसी पद निरवाण।।