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भरत चरित
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१४. छत्ररत्न साधिक अड़तालोस कोस छाया करता है। वह सर्दी-गर्मी का परिहार करता है। वर्षा आदि बाधाएं भी इससे टल जाती हैं।
१५. चर्मरत्न साधिक अड़तालीस कोस में नीचे विस्तीर्ण होता है। वह नौका के समान है। वह पुण्य के प्रमाण से प्राप्त हुआ है।
१६. दंडरत्न पर्वत-पहाड़ों को तोड़कर चकचूर कर देता है। वह विषम स्थल को सम बनाता है। विषमता को दूर कर देता है।
१७. असि खड्गरत्न वज्रादि को भी काट देता है। अत्यंत कठोर वस्तु को भी काटकर दो टुकड़े कर देता है।
१८. मणिरत्न अत्यंत मनोहर है। उसका प्रकाश चंद्रमा के समान साधिक अड़तालीस कोस में प्रकाश फैलाता है।
१९. काकिनीरत्न पास में होने से घाव नहीं लगता है। घाव के ऊपर स्पर्श करने से वह तुरंत भर जाता है।
२०. सेना का नायक सेनापतिरत्न ऐसा शूर है कि लाखों सैनिकों को भंग कर चकचूर कर देता है।
२१. गाथापतिरत्न में अनेक गुण हैं। वह धान्य निष्पन्न करता है। प्रभात में धान्य बोता है दिन रहते-रहते उसे काट लेता है।
२२. बढ़ईरत्न सेना के लिए यथायोग्य आवास उपलब्ध करवाता है। भरत नरेंद्र के लिए बयांलीस तले का महल बनाता है।
२३. पुरोहितरत्न सत्कर्म करने में प्रधान है। उसके भी अनेक गुण हैं। वह भी परम रत्न है।
२४. अनेक गुणों का भंडार स्त्रीरत्न अनुपम है। पूरे भरतक्षेत्र में इस सरीखी कोई नारी नहीं होती।