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भरत चरित
२९७ १३. माणवक निधान के अंतर्गत सूरवीर-कायर पुरुष की उत्पत्ति, सेना की सन्नद्धता-श्रृंगार, खड्ग आदि शस्त्र तथा राजनीति की विधि आती है।
१४. शंख निधान के अंतर्गत नृत्य-विधि, नाटक-विधि, काव्य-कला, धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष- चार पुरुषार्थ विधि आती है।
१५. महाशंख निधान के अंतर्गत संस्कृत-प्राकृत आदि विविध भाषाओं तथा त्रुटितांग आदि वाद्ययंत्रों की उत्पत्ति आती है।
१६. एक-एक निधान के आठ-आठ पहिए हैं। वे आठ-आठ योजन ऊंचे हैं, नौ-नौ योजन चौड़े तथा बारह-बारह योजन लंबे हैं।
१७. उनका संस्थान मंजूषा के आकार का है। गंगा नदी के उद्गम पर उनका स्थान है। गंगा जहां समुद्र में मिलती है वहां आकर वे चक्रवर्ती के लिए प्रकट होते हैं।
१८. कनक स्वर्ण के इन नौ निधानों के कपाट वैडूर्य रत्नों के होते हैं। वे विविध प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण भरे हुए हैं।
१९. उन पर सूर्य-चंद्रमा के साक्षात् लक्षण आकार-चिह्न, स्थान-स्थान पर सुशोभित हैं।
२०. ऐसे निधान भरतजी को प्राप्त हुए हैं। इन्हें भी वे विनष्ट होने वाली माया जानते हैं। वे संसार में अनुरक्त नहीं रहेंगे अपितु इन्हें छोड़ संयम लेकर मोक्ष में जाएंगे।