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भरत चरित
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२. वह एक सौ आठ अंगुल उन्मान - प्रमाणोपेत है । उसमें तनिक भी कमी नहीं है । वह श्रेयस्कारी है ।
३. उसका शरीर तेजस्वी, आकार रूपवान, छत्र आदि लक्षणों से युक्त है। वह अक्षीण यौवना है। उसके केश नाखून कभी सफेद नहीं होते ।
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४. वह सब रोगों का विनाश करने वाली है। उसके हस्त - स्पर्श से ही रोग मिट जाते हैं। वह बल-वीर्य को बढ़ाने वाली है। उसके संभोग से बल की वृद्धि होती है।
५. उसका स्पर्श समशीतोष्ण तथा छहों ही ऋतुओं में मनोगत है। सर्दी में उसका स्पर्श उष्ण तथा गर्मी में शीतल होता है ।
६,७. उसके शरीर के तीन स्थान पतले, तीन स्थान रक्तिम तीन स्थान उन्नत, तीन स्थान गंभीर, तीन स्थान कृष्ण, तीन स्थान श्वेत, तीन स्थान लम्बे - आयत तथा तीन स्थान चौड़े हैं।
८. उसके शरीर का संस्थान समचतुरस्र तथा रूप अनुपम है । भरतक्षेत्र की महिलाओं में वह सर्वसुंदरी है।
९. उसके स्तन सुंदर एवं मनोहर हैं। मुख पूनम के चांद के समान है । हाथ-पैर, नेत्र अनुपम और आश्चर्यकारी है।
१०. मस्तक के केश तथा दांतों की पंक्ति भी श्रीकार, दर्शनीय, रमणीय, हृदय में चुभने वाली तथा मनोहारी है।
११. वह शृंगार का मानो आकर ही है। उसका वेष भी सुंदर - मनोहर है । वह बोलने-चलने तथा मैत्रीभाव में अत्यंत चतुर है 1