________________
२७८
भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० १२. तिणरों हसवों गंभीर इचर्य कारी, नेत्र चेष्टा विकार अतंत।
विलास माहोमाहि बोलवों, तिणमें डाही घणी मतवंत।।
१३. इंद्र तणी अपछरा सरिखो, तिणरों रूप घणों छे अनप।
ओर देवंगणा इणरें तुलें न आवें, इसडों छे तिणरो रूप॥
१४. एहवी सुभद्रा नामें अस्त्री रत्न ,, भद्र किल्याणकारणी नार।
ते जोवन रे विषं वर्ते जोवन में, तिणमें सगलाइ गुण श्रीकार।।
१५. एहवों अस्त्री रत्न ल्यावें विनमी राजा, नमी राजा ल्यावें रत्न अनेक।
वळे कडा में बाह्यां ना आभरण, नमी राजा ल्यावें छे विशेष।।
१६. उतकष्टी चाल विद्याधर नी, चालें आया भरतजी रे पास।
नांन्हीं नान्हीं घूघरीया जुगत सूं, तिहां ऊभा रह्या छ आकास।।
१७. त्यारें पेंहरण वसत्र पंचवर्णा ,, प्रधान घणा श्रीकार।
विनें सहीत बेहूं हाथ जोडी नें, नमण करें वारूं वार।।
१८. जय विजय करी वधावें नरिंद नें, विडदावलीयां बोलावें अनेक।
थे जीत लीयों सर्व भरत खेतर नें, बाकी सत्रू न राख्यों एक।।
१९. म्हे सेवग छां थांरा आग्याकारी, थारा देस तणा वसवांन।
म्हे किंकर चाकर आप तणा छां, मुझ शिर छे तुम तणी आण।।
२०. तिण कारण मांसूं आप किरपा करेनें, म्हारो भेटणों ल्यो माहाराय।
इम कहेनें विनमी नामें राजा, अस्त्री रत्न सूंपे दीधी ताहि।। २१. नमी राजा रत्न गेंहणादिक आप्या, करे घणा गुणग्राम।
जब भरतजी त्यांने घणा सतकारे, पाछी सीख दीधी तिण ठांम।।
२२. नमी विनमी विद्याधर नमाया, त्यांने आंण मनाइ ताम।
ते पिण थोथी माया जाण संजम लेसी, मोख में जासी अविचल ठांम।।