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दुहा १. सीख देइ आपात चिलात में, कहें सेनापती में बोलाय।
जावो तुम्हे देवाणुपीया, सिंधू बारें बीजा खंड मांहि।।
२. सिधु ने पिछिम लवण विचें, वेताढ में चूल हेमवंत वीच।
सगली ठाम आंण मनाय जों, सम विषम ऊंच ने नीच।।
३. सगलां में आंण मनायनें, भेटणा लेले पगां लगाय।
भारी रत्नादि लेइनें तिहां थकी, म्हारी आग्या पाछी सूपे आय॥
४. सेनापती सुण तिमहीज कीयो, आगें खंड साध्यों तिमहीज जाण।
भेटणों ले पाछो आवीयों, आग्या पाछी तूंपी भरतजी ने आंण।
५. चक्र रत्न वळे एकदा, आउधसाला थी नीकल्यों बार।
ऊंचो आकासे उतपत्यों, सहंस देवतां सहीत तिणवार।।
६. वाजंत्र अनेक वाजता थकां, इसाणं कुण में जाय।
चूल हेमवंत साहमों चालीयों, तिणने देख्यों भरत महाराय।।
७. ॲ पिण लारे सेन्या ले नीकल्या, भरत राजा पिण तांम।
चूल हेमवंत सू दूरा नेरा नही, सेन्या उतारी तिण ठांम।।
ढाळ : ४४ (लय : नणदल बिंदली दे तथा मुनीवर वेंरागी)
राजंद वडभागी। १. पछे पोषदसाला रें मांहि, सातमो तेलो कीयों छे राय हो।
चूल हेमवंत गिरी कुमार, तिण देव साझण तिणवार हो। राजंद।।