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भरत चरित
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६. वह वंश - वेणु, वृक्ष, महिषशृंग, हाड, दांत, लोह, लोहदंड आदि को भी भेद सकता है।
७. वह विशिष्ट जाति के वज्र हीरों को भी भेदने वाला है। दुर्भेद्य वस्तुओं को भेदने में भी वह तनिक भी नहीं अटकता ।
८. वह खड्गरत्न सब वस्तुओं में अप्रतिहत, अमोध शक्ति वाला है । वह प्रहार करने पर किसी से स्खलित नहीं होता तब औदारिक शरीर की तो बात ही कहां रही ? |
९. वह लंबाई में पचास अंगुल तथा सोलह अंगुल विस्तीर्ण है । उस उत्कृष्ट खड्ग की मोटाई आधे अंगुल प्रमाण है ।
१०. ऐसा अमूल्य खड्गरत्न नरपति भरतजी के पास है । उस खड्गरत्न को उस समय भरत नरेंद्र से सेनापति सुषेण ने अपने हाथ में लिया ।
११. सुषेण सेनापति अश्वरत्न पर सवार हुआ और हाथ में खड्गरत्न लेकर युद्ध करने के लिए चला।
१२. पूर्व में जैसा आपात चिलाती से संग्राम कर उन्हें हराकर नतमस्तक किया वह सारा वर्णन यहां जानना चाहिए।
१३. भरत राजा के पास ऐसा खड्गरत्न है । पर वे उसमें आसक्त नहीं हैं। वे उसका भी त्याग कर संयम लेकर मोक्ष में जाएंगे।