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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ६. वंस वेणू वृक्ष श्रृंग भेंसादिक, हाडनें दांत विविध प्रकार।
लोह तथा वळे लोहनो दांडो, त्यांरों छे भेदणहार।।
७. वज्र हीरां री जात वर प्रधान ,, त्यांरो पिण भेदणहार।
वळे दुभेद वस्तुनो भेदणहारो, कठे अटकें नही छे लिगार।।
८. वळे सर्व वसतु में अप्रतिहत छे, आमोघ सक्त खडग रत्न एह।
ते क्यां ही खलें नही मेल्यों हुंतों, तो किसूं कहिवों उदारीक देह।।
९. ते पचास आंगुल नो दीर्घ लांब पणें छे, सोलें अंगुल वसतीरण जाण। . अर्ध आंगुल रों जाड पणें छे, उतकष्टों खडग प्रमाण।
१०. एहवों असी रत्न छे खडग अमोलक, नरपती हाथ मझार।
ते खडग भरत राजा रा पासा थी, सेनापती लीयों तिण वार।।
११. अश्व रत्न रे ऊपर चढीयों, सुसेण सेनापती ताम।
हाथ में लीधो छे खडग रत्न नें, करवा चाल्यो संग्राम।।
१२. आपात चिलाती सु संग्राम कीधो, हठाय दीया तिण वार। ... त्यांने पगां लगायनें सीख दीधी छे, ते लारें कह्यों विसतार।।
१३. एहवों खडग रत्न , भरत नरिंद नें, तिणसं पिण राचे नही राजांन।
तिणनें त्यागे वेंरागे संजम लेने, जासी पांचमी गति परधान।।